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प्राचीन इतिहास निर्माण के साधन [१९ के साहित्य से अपरिचय । इस समय तक भारत के विद्वानों को देश के इतिहास का महत्व विदित नहीं हुआ था। इस कारण उनका ध्यान इतिहास की खोज की ओर नहीं गया था। अंग्रेजों का संस्कृत से अपरिचित होना स्वाभाविक ही था। कई योरपियन तो यहाँ तक भ्रम में थे कि वे संस्कृतसाहित्य को ब्राह्मणों की केवल जालसाज़ी-मात्र ही समझ बैठे थे।
इतिहास-निर्माण का प्रारम्भिक इतिहास ।
संस्कृत का ज्ञान प्राप्त करने की आवश्यकता पहिलेपहिल " ईस्ट इण्डिया कम्पनी " के कर्मचारियों को सन् १७७५ ईसवी में जान पड़ी। अदालतों के सुभीते के लिए उस समय के गवर्नर जनरल वारन हेस्टिंग्ज़ ने यहां के पण्डितों से स्मृतियों व अन्य धर्मशास्त्रों के आधार पर एक न्याय-कोप (कानून का ग्रन्थ ) तैयार कराया, जो स्वभावतः संस्कृत में तैयार हुआ। अब प्रश्न यह उठा कि अंग्रेज न्यायाधीशों के समझने के लिए इसका अंग्रेज़ी में अनुवाद कैसे हो । अन्त में, जव संस्कृत से अंग्रेज़ी में अनुवाद कर सकनेवाला कोई विद्वान् न मिल सका, तब वह पुस्तक फारसी में अनुवादित करायी गयी और उसपर से एक अंग्रेजी प्रति तैयार हुई। अनुभवी अंग्रेजों के हृदय पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा और उसी समय से बहुतेरे विद्वानों का ध्यान संस्कृत की ओर आकर्पित हुआ।
सन् १७८४ ईसवी में कलकत्ता-हाईकोर्ट के न्यायाधीश सर विलियम जोन्स के प्रयत्न से पशिया के इतिहास, शिल्प,