Book Title: Jain Itihas ki Purva pithika aur Hamara Abhyutthana
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 17
________________ हमारा इतिहास [१३ धर्म के सिद्धों और संतोंके साहित्य और इतिहास का राहुलजी जो उद्धार कर रहे हैं वहभी उल्लेखनीय है । इस इतिहास परिषद् के मनोनीत सभापति श्री जयचंद्रजी विद्यालंकार अपनी अनुपम गवेषणाओद्वारा भारतीय इतिहास की सम्पत्तिमें असाधारण वृद्धि कर रहे हैं । आपके अभीतक जो 'भारतभूमि और उसके निवासी' तथा 'भारतीय इतिहास की रूपरेखा' नामक दो ग्रंथ प्रकाशित हुए हैं उनसे भारतका इतिहास एक तरह से बहुत ही सजीव हो उठा है। आप भारतीय इतिहासकी अनेक उलझनों और गुत्थिओंको बहुत ही उत्तमता से सुलझाने का प्रयत्न कर रहे हैं। इस समय आपका भारतीय इतिहास का दिग्दर्शन' तैयार हो रहा है। यह जो इतिहास-सम्बन्धी कार्य हिन्दी भाषामें अवतक हुआ है और हो रहा है उसका हमें गर्व है। किन्तु अभी भी इस साहित्य को बढानेका विपुल क्षेत्र हमारे सामने पड़ा है। देश के ज्ञान-विज्ञान व कला-कौशल सम्बंधी इतिहास हिन्दी साहित्य में अभीतक बहुत ही कम है। भापा सम्बंधी इतिहास की खोज वस्तुत अभी प्रारम्भ ही हुई है। कितने ग्रंथ हिन्दी में ऐसे हैं जिनमें देशका धार्मिक इतिहास सुन्दरता और प्रामा. णिकता से वर्णन किया गया हो ? स्कूली किताबोंको छोड़कर हिन्दी में सामाजिक व राजनैतिक इतिहासका यथार्थ परिचय करानेवाले ग्रंथ इने गिने ही हैं। इन सव विषयोंका इतिहास प्रारम्भ में एक एक कालका, शताब्दि या अर्धशताब्दि का, एक एक प्रदेश का, अलग अलग, लिखा जाना और फिर उनका सामञ्जस्य बैठाना आवश्यक है। जिस तरह महाराष्ट्रमें ऐति

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