Book Title: Jain Itihas ki Purva pithika aur Hamara Abhyutthana
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 16
________________ १२ हमारा इतिहास हैं और जिसके तीन खंड अवतक निकल चुके हैं वह हिन्दी में भारत के इतिहास में गौरवकी चीज है । श्रीयुत काशीप्रसादजी जायसवाल का जो Hindu Polity नामक ग्रंथ इतिहास संसारमें यशस्वी हुआ है उसका विषय प्रथमतः विद्वान् लेखक द्वारा हिन्दी में ही भागलपुरमें हुए हिन्दी साहित्य सम्मेलन के चतुर्थ अधिवेशन पर एक निबन्ध के रूपमें प्रस्तुत हुआ था। जायसवालजीकी ऐतिहासिक सेवायें अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं, यद्यपि अपनी खाजों को जगद्व्यापी बनाने के हेतु उन्होने विशेषतः अंग्रेजी में ही अपने ग्रंथ रचे हैं। पं. चन्द्रधर गुलेरी ने पुरानी हिन्दी के विषयपर जो लेख नागरी प्रचारिणी पत्रिका में लिखे थे वे हिन्दी भाषाके इतिहास के लिये बड़ेही महत्वपूर्ण सिद्ध हुए, और उनके लिये उस पत्रिका का आदर युरोपीय विद्वानों में भी विशेष रूपसे हुआ। इस दिशामें गुलेरीजीने जो कार्य प्रारम्भ किया था, शोक है, वे उसे अपनी असा. मयिक मृत्युके कारण पूरा न कर पाये। स्वयं रायबहादुर डा. हीरालालजीने भारतीय पुरातत्व में जो कार्य किया उसमें यहांपर उल्लेखनीय उनके वे गजेटियर हैं जिनमें उन्होने मध्यप्रदेश के एक एक जिले का लागपूर्ण इतिहास संग्रह किया है। ये गजेटियर उन्होने सरल लोकप्रिय शैलीमें लिखे हैं। वर्तमान में महापंडित त्रिपिटकाचार्य श्री राहुल सांकृत्यायनजी तिब्बत और भारतके सम्बन्धीय इतिहास के एक बड़े भारी विद्वान हैं । उनका जो 'तिब्बत में सवा वर्ष ' नामक ग्रंथ अभी अभी प्रकाशित हुआ है उसका विद्वत्संसार में अच्छा आदर हो रहा है। वह अब अंग्रेजी में भी अनुवादित हो रहा है। बौद्ध

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