Book Title: Jain Itihas ki Purva pithika aur Hamara Abhyutthana
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 13
________________ जैन इतिहासकी पूर्व - पीठिका [ ९ मनुष्यको कराया। इस प्रकार वे ज्योतिष शास्त्र के आदि आदिकर्ता ठहरते हैं । उनके पीछे सम्मति, क्षेमंधरादि हुए जिन्होंने ज्योतिष शास्त्रका ज्ञान बढाया, अन्य कलाओंका आविष्कार किया व सामाजिक नियम दण्ड विधानादि नियत किये। जैन पुराणने इस इतिहासको, यदि विचार किया जाय तो सचमुच बहुत अच्छे प्रकारसे सुरक्षित रक्खा है। धर्मके संस्थापक | कुलकरोंके पश्चात् ऋषभदेव हुए जिन्होंने धर्मकी संस्थापना की । इनका स्थान जैसा जैन पुराणोंमें है वैसा हिन्दू पुराणों में भी पाया जाता है। वहां भी वे इस सृष्टिके आदिमें स्वयंभू मनु से पांचवी पीढीमें हुए बतलाये गये हैं, और वे ईशके अवतार गिने जाते हैं । उनके द्वारा धर्मका जैसा प्रचार हुआ उसका भी वहां वर्णन है। जैन पुराणोंमें कहा गया है कि ऋषभदेवने अपनी ज्येष्ठ पुत्री 'ब्राह्मी' के लिए लेखनकलाका आविष्कार किया । उन्हीके नामपर से इस आविष्कृत लिपिका नाम ' ब्राह्मी लिपि ' पड़ा । इतिहासज्ञ ब्राह्मी लिपिके नामसे भलीभांति परिचित हैं । आधुनिक नागरी लिपिका यही प्राचीन नाम है । ऋषभदेवके ज्येष्ठ पुत्रका नाम भरत था जो आदि चक्रवर्ती हुए । भरत चक्रवर्तीका नाम हिन्दू पुराणोंमें भी पाया जाता है, यद्यपि उनके वंशका वर्णन वहां कुछ भिन्न है । इन्ही भरत के नामसे यह क्षेत्र भारतवर्ष कहलाया । हिन्दू पुराणोंमें ऋषभदेवके पश्चात् होनेवाले तीर्थकरोंका उल्लेख अभीतक नहीं पाया गया, पर जैन ग्रंथों में उन सब पुरुषों का चरित्र वर्णित है जिन्होंने समय समय पर ऋषभदेव द्वार

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