Book Title: Jain Itihas ki Purva pithika aur Hamara Abhyutthana
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 10
________________ जैन इतिहास की पूर्व - पीठिका [ ५ 1 देशमें ईसा से छह सात हजार वर्ष पूर्वकी मानवीय सभ्यता के प्रमाण मिले हैं। चीन देशकी सभ्यता भी इतनी ही व इससे अधिक प्राचीन सिद्ध होती है। अमेरिका देशमें पुरातत्व शोधके सम्बंध में जो खुदाईका काम हुआ है उसका भी यही फल निकला है। हाल ही में भारतवर्ष के पंजाब और सिन्ध प्रदेशोंके 'हरप्पा ' और ' भोयनजोडेरो' नामक स्थानोंपर खुदाईसे जो प्राचीन ध्वंसावशेष मिले हैं वे भी ईसासे आठ दस हजार वर्ष पूर्व के अनुमान किये जाते हैं । ये सब प्रमाण भी हमें मनुष्यके प्रारम्भिक इतिहासके कुछ भी समीप नहीं पहुंचाते । वे केवल यही सिद्ध करते हैं कि उतने प्राचीन कालमै भी मनुष्यने अपार उन्नति करली थी, ऐसी उन्नति जिसके लिये उन्हें हजारों लाखों वर्षौंका समय लगा होगा। अब चीन, मिश्र, खाल्दिया, इंडिया, अमेरिका, किसी ओर भी देखिये, इतिहासकार ईसाले आठ आठ दस दस हजार वर्ष पूर्वकी मानवीय सभ्यताका उल्लेख विश्वास के साथ करते हैं । जो समय कुछ काल पहले मनुष्यकी गर्भावस्थाका समझा जाता था, वह अव उसके गर्भका नहीं, बचपनका भी नहीं, प्रौढ कालका सिद्ध होता है । जितनी खोज होती जाती है उतनी ही अधिक मानवीय सभ्यताकी प्राचीनता सिद्ध होती जाती है । कहां है अब मानवीय सभ्यताका प्रातःकाल ? इससे तो प्राचीन रोमन हमारे समसामयिकले प्रतीत होते हैं, यूनानका सुवर्ण - काल कलका ही समझ पड़ता है । मित्रके गुम्मटकारों और हममें केवल थोडेसे दिनोंका ही अन्तर पड़ा प्रतीत होता है। मनुष्यकी प्रथमोत्पत्तिका अध्याय आधुनिक इतिहास हीसे उड़ गया है। ऐसी अवस्थामें जैन पुराणकार H

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