Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 01 02 Author(s): Nathuram Premi Publisher: Jain Granthratna Karyalay View full book textPage 5
________________ उस बलकी दरकार । मुझे है स्वामी, उस बलकी दरकार ॥ १ सारा ही संसार करे यदि, दुर्व्यवहार - प्रहार । हटे न तो भी सत्यमार्गगत, श्रद्धा किसी प्रकार || मुझे है स्वामी, उस बलकी दरकार ॥ २ धन-वैभवकी जिस आँधीसे, अस्थिर सब संसार । उससे भी न जरा डिग पावे, मन बन जाय पहार ॥ मुझे है स्वामी, उस बलकी दरकार ॥ ३ असफलताकी चोटोंसे नहिं, दिलमें पड़े दरार । अधिकाधिक उत्साहित होऊँ, मानूँ कभी न हार ॥ मुझे है स्वामी, उस बलकी दरकार ॥ ४ दुखदरिद्रताकृत अतिश्रम से, तन होवे बेकार । तो भी कभी निरुद्यम हो नहि, बैठूं जगदाधार ॥ मुझे है स्वामी, उस बलकी दरकार ॥ ५ जिसके आगे तनबल धनबल, तृणवत् तुच्छ असार । महावीर जिन ! वही मनोबल, महामहिम सुखकार ॥ मुझे है स्वामी, उसहीकी दरकार ॥ ६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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