________________
आठ विधि-विधानों का उल्लेख हैं । इस ग्रन्थ में वर्णित चालीस विधि-विधानों
को निम्न सूची द्वारा जाना जा सकता हैं
-
(अ) गृहस्थ सम्बन्धी
1 गर्भाधान संस्कार 2 पुंसवन संस्कार 3 जातकर्म संस्कार
4 सूर्य-चन्द्र दर्शन
संस्कार
5 क्षीराशन संस्कार 6 षष्ठी संस्कार
7 शुचि संस्कार 8 नामकरण संस्कार 9 अन्न प्राशन संस्कार 10 कर्णवेध संस्कार 11 चूडाकरण संस्कार 12 उपनयन संस्कार 13 विद्यारम्भ संस्कार 14 विवाह संस्कार 15 व्रतारोपण संस्कार 16 अन्त्य संस्कार
(ब) मुनि सम्बन्धी
1 ब्रह्मचर्यव्रत ग्रहण संस्कार
2 क्षुल्लक विधि
3 प्रव्रज्या विधि
4 उपस्थापना विधि
Jain Education International
5 योगोद्वहन विधि
6 वाचनाग्रहण विधि
7 वाचनानुज्ञा विधि 8 उपाध्यायपद स्थापना विधि 9 आचार्यपद स्थापना विधि 10 प्रतिमाउद्वहन विधि 11 व्रतिनी व्रतदान विधि 12 प्रवर्तिनीपद स्थापना विधि 13 महत्तरापद स्थापना विधि 14 अहोरात्र चर्या विधि 15 ऋतुचर्या विधि 16 अन्तसंलेखना विधि
(स) मुनि एवं गृहस्थ सम्बन्धी 1 प्रतिष्ठा विधि
For Private & Personal Use Only
2 शान्तिक- कर्म विधि 3 पौष्टिक-कर्म विधि
4 बलि विधान
तुलनात्मक विवेचन :
जहाँ तक प्रस्तुत कृति में वर्णित गृहस्थ जीवन सम्बन्धी षोडश संस्कारों का प्रश्न हैं, ये संस्कार सम्पूर्ण भारतीय समाज में प्रचलित रहे हैं, सत्य यह है कि ये संस्कार धार्मिक संस्कार न होकर सामाजिक संस्कार रहे हैं और यही कारण है कि भारतीय समाज के श्रमण धर्मों में भी इनका उल्लेख मिलता हैं। जैन परम्परा के आगमों जैसे ज्ञाताधर्मकथा, औपपातिक, राजप्रश्नीय, कल्पसूत्र आदि में इनमें से कुछ संस्कारों का जैसे जातकर्म या जन्म संस्कार, सूर्य-चन्द्र दर्शन संस्कार, षष्ठी संस्कार, नामकरण संस्कार, विद्यारम्भ संस्कार आदि का उल्लेख मिलता हैं, फिर भी जहाँ तक जैन आगमों का प्रश्न हैं उनमें मात्र इनके नामोल्लेख ही है । तत्सम्बन्धी विधि-विधानों का विस्तृत विवेचन नहीं है। जैन आगमों में गर्भाधान संस्कार का उल्लेख न होकर शिशु के गर्भ में आने पर माता द्वारा स्वप्नदर्शन का ही उल्लेख मिलता है। इसी प्रकार विवाह के भी कुछ उल्लेख है, किन्तु उनमें व्यक्ति के लिए विवाह की अनिवार्यता का प्रतिपादन नहीं
5 प्रायश्चित्त विधि
6 आवश्यक विधि 7 तप विधि 8 पदारोपण विधि
www.jainelibrary.org