Book Title: Jain Gruhastha ki Shodashsanskar Vidhi
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

View full book text
Previous | Next

Page 155
________________ षोडश संस्कार आचार दिनकर - 125 रवितनय प्रबोधमेतात् जिनपूजाकरणैकसावधानान् ।। "ऊँ शने इह,"- शेष पूर्वानुसार पढ़े। चन्द्र की पूजा के लिए निम्न द्रुतविलंबित छंद बोले :"अमृतवृष्टिविनाशितसर्वदोपचितविघ्नविषः शशलांछनः। वितनुतां तनुतामिह देहिनां प्रसृततापभरस्य जिनार्चने।। "ऊँ चन्द्र इह,"- शेष पूर्वानुसार पढ़े। बुध की पूजा के लिए निम्न छंद बोले :"बुधविबुधगणर्चितांघ्रियुग्म प्रमथितदैत्य विनीतदुष्टशास्त्र । जिनचरणसमीपगोऽधुनात्वं रचय मतिं भवधातनप्रकृष्टाम्।। "ऊँ बुध इह,"- शेष पूर्वानुसार पढ़े। गुरू की पूजा के लिए निम्न छंद बोले :सुरपतिहृदयावतीर्णमंत्रप्रचुरकलाविकलप्रकाश भास्वन् । जिनपतिचरणाभिषेककाले कुरू बृहतीवर विघ्नविप्रणाशम्।। "ऊँ गुरो इह."- शेष पूर्वानुसार पढ़े। केतु की पूजा के लिए निम्न द्रुतविलंबित छंद बोले :"निजनिजोदययोगजगत्त्रयी कुशलविस्तरकारणतां गतः । भवतु केतुरनश्वरसंपदा सतत हेतु वारित विक्रमः ।। "ऊँ केतो इह."- शेष पूर्वानुसार पढ़े। क्षेत्रपाल की पूजा के लिए निम्न आर्या छंद बोले :"कृष्णसितकपिलवर्णप्रकीर्णकोपासितांघ्रियुग्म सदा । श्री क्षेत्रपाल पालय भविकजनं विघ्नहरणेन ।। "ऊँ क्षेत्रपाल इह,"- शेष पूर्वानुसार पढ़े। यह ग्रहों एवं क्षेत्रपाल की पूजा विधि है। प्रतिष्ठा, शान्तिक-पौष्टिक कर्म में उपयोगी होने के कारण विद्यादेवी, शासन के यक्ष, यक्षिणी, सुरलोक के अधिपति के पूजन की विधि बृहत्स्नात्र-विधि में बताई गई है। उसके बाद पूर्व में कहे गए मंत्रों के द्वारा जिनप्रतिमा की गन्ध, पुष्प, अक्षत, धूप, दीप से पूजा करे। फिर हाथ में वस्त्र लेकर निम्न छंद बसंततिलका राग में पढ़े : "त्यक्ताखिलार्थवनितासुतभूरिराज्यं निःसंगतामुपगतो जगतामधीशः । भिक्षुर्भवन्नपि स वर्मणि देवदूष्यमेकं दधाति वचनेन सुरासुराणाम् ।। यह छंद बोलकर वस्त्र पूजा करे। (यह वस्त्रपूजा की विधि है) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172