Book Title: Jain Gruhastha ki Shodashsanskar Vidhi
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 153
________________ षोडश संस्कार निर्ऋते की पूजा के लिए निम्न आर्या छंद पढ़े :“राक्षसगणपरिवेष्टितचेष्टितमात्रप्रकाशहतशत्रो । स्नात्रोत्सवेऽत्र निर्ऋते नाशय सर्वाणि दुःखानि ।। "ॐ निर्ऋते इह शेष पूर्वानुसार पढ़े । वरूण की पूजा के लिए निम्न स्रग्धरा छंद पढ़े :"कल्लोलानीतलोलाधिककिरणगणस्फीतरत्नप्रपंच । प्रोद्भूतौर्वाग्निशोभं वरमकरममहापृष्टदेशोक्तमानम् ।। चंचच्चीरिल्लि श्रृंगिप्रभृतिझषगणैरर्चितं वारूणं गो । वर्ष्मच्छिद्यादपायं त्रिजगदधिपतेः स्नात्रसत्रे पवित्रे ।।1।। “ऊँ वरूण इह,”- शेष पूर्वानुसार पढ़े । वायु की पूजा के लिए निम्न मालिनी छंद पढ़े “ध्वजपटकृतकीर्तिस्फूर्तिदीप्यद्विमान । प्रसृमरबहुवेगत्यक्त सर्वोपमान ।। इह जिनपतिपूजासंनिधौ मातरिश्व : 1 आचार दिनकर न्नपनय समुदायं मध्यबाह्यातपानाम् ।। “ॐ वायो इह, " - शेष पूर्वानुसार पढ़े । कुबेर की पूजा के लिए निम्न बसंलतिलका छंद पढ़े : "कैलासवासविलसत्कमलाविलास । संशुद्धहासकृतदौस्थ्यकथानिरास । । श्रीमत्कुबेर भगवन् स्नपनेऽत्र सर्वं । Jain Education International विघ्नं विनाशय शुभाशय शीघ्रमेव ।। "ऊँ कुबेर इह, " - शेष पूर्वानुसार पढ़े । ईशान की पूजा के लिए निम्न बसंततिलका छंद पढ़े :"गंगातरंग परिखेलनकीर्णवारिप्रोद्यत्कपर्दपरिमण्डित पार्श्वदेशम् । नित्यं जिनस्नपनहृष्टहृदः स्मरारे विघ्नं निहन्तु सकलस्य जगत्त्रयस्य ।। "ॐ ईशान इह, " - शेष पूर्वानुसार पढ़े । नाग की पूजा के लिए निम्न वैतालीय छंद पढ़े :“फणिमणिमहसा विभासमानाः कृतयमुनाजलसंश्रयोपमानाः । फणिन इह जिनाभिषेककाले- बलिभवनादमृतं समानयन्तु ।। "ॐ नाग इह, " - शेष पूर्वानुसार पढ़े । ब्रह्म की पूजा के लिए निम्न द्रुतविलंबित छंद पढ़े : 123 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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