Book Title: Jain Gruhastha ki Shodashsanskar Vidhi
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 152
________________ षोडश संस्कार आचार दिनकर - 122 स्नात्र करें। फिर अभिषेक के अन्त में गन्धोदक से पूर्ण कलश को लेकर निम्न बसंततिलका छंद पढ़े : "संघे चतुर्विध इह प्रतिभासमाने श्री तीर्थपूजनकृतप्रतिभासमाने । गन्धोदकैः पुनरपि प्रभवत्वजस्रं स्नात्रं जगत्रयगुरोरतिपूतधारैः ।।" यह छंद बोलकर परमात्मा के चरणों पर कलश से अभिषेक करे एवं स्नात्र पूर्ण करे (निष्पन्न करे)। _अब पंचामृतस्नात्र, शान्तिक–पौष्टिक-विधि प्रतिष्ठा में उपयोगी होने के कारण बृहत्स्नात्र-विधि का वर्णन किया जा रहा है। आर्हत् (जैन) श्वेताम्बर मत में पंचामृतस्नात्र-विधि शान्तिक आदि विधि में होती है। प्रतिदिन गन्धोदक द्वारा ही स्नात्र करते हैं। पश्चात् पुष्पांजलि लेकर निम्न छंद पढ़े : "इन्द्राग्ने यम निऋते जलेश वायो वित्तेशेश्वर भुजगा विरंचिनाथ । संघट्ठाधिकतमभक्तिभारभाजः स्नात्रेस्मिन् भुवनविभोः श्रियंकुरूध्वम्।।" यह छंद बोलकर स्नात्रपीठ के समीप निर्मित दिक्पालों की पीठ पर पुष्पांजलि अर्पण करे तथा प्रत्येक दिक्पाल की पूजा करे। इन्द्र की पूजा के लिए निम्न शिखरिणी छंद पढ़े :__ "सुराधीश श्रीमन् सुदृढतरसम्यक्त्ववसतेशचीकान्तोपान्तस्थितिविबुध कोट्यानतपद। ज्वलद्वजाघातक्षपितदनुजाधीशकटक प्रभोः स्नात्रे विघ्नं हर हर हरे पुण्यजयिनाम्।।" ॐ शक्र इह जिनस्नात्रमहोत्सवे आगच्छ-आगच्छ, इदं जलं गृहाण-गृहाण, गन्धं गृहाण-गृहाण, धूपं गृहाण-गृहाण, दीपं गृहाण-गृहाण, नैवेद्यं गृहाण-गृहाण, विघ्नं हर-हर, दुरितं हर-हर, शान्ति कुरू कुरू, तुष्टिं कुरू कुरू, पुष्टिं कुरू कुरू, वृद्धिं कुरू कुरू स्वाहा।" यह बोलकर पुष्प गन्ध आदि से इन्द्र की पूजा करे। अग्नि की पूजा के लिए निम्न व्यपच्छंदसिक छंद पढ़े :"बहिरन्तरनन्ततेजसा विद्धत्कारणकार्यसंगतिमः । जिनपूजन आशुशुक्षणे कुरू विघ्नप्रतिघातमंजसा ।। "ऊँ अग्ने इह,"- शेष पूर्ववत् पढ़े। यम की पूजा के लिए निम्न वसंततिलका छंद पढ़े :"दीप्तांजनप्रभतनो ततु सन्निकर्ष वाहारिवाहन समुद्धर दण्डपाणे। सर्वत्र तुल्य करणीय करस्थधर्म कीनाश नाशय विपतिसरं क्षणेऽत्र ।। "ॐ यम इह,"- शेष पूर्वानुसार पढ़े। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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