Book Title: Jain Gruhastha ki Shodashsanskar Vidhi
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 134
________________ षोडश संस्कार आचार दिनकर - 104 यह चैत्यस्तव की वाचना है। यह चैत्यस्तव की वाचना की उपधान-विधि है। अब चतुर्विंशतिस्तव की वाचना के उपधान की विधि का उल्लेख करते है - दो नंदी सहित सभी क्रियाएँ पूर्ववत् करें । प्रथम दिन एकभक्त, द्वितीय दिन उपवास, तृतीय दिन एकभक्त, चतुर्थ दिन उपवास, पाँचवे दिन एकभक्त, छठे दिन उपवास, सातवें दिन एकभक्त और आठवें दिन उपवास - यह आठ दिन के तप हैं। प्रथम तीन गाथाओं की वाचना "लोगस्स से लेकर केवली" पद तक - यह प्रथम वाचना है। फिर क्रमशः लगातार बारह आयम्बिल करें। उसके अन्त में निम्न तीन गाथाओं की वाचना दें - उसभमजियं च वंदे से लेकर वद्धमाणं च तक की - यह द्वितीय वाचना है। फिर उसी क्रम में तेरह आयम्बिल करें। उसके अंत में “एवं मए अभिथुया से लेकर सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु" तक की - यह तृतीय वाचना है। यह चतुर्विंशतिस्तव की वाचना की उपधान-विधि है। श्रुतस्तव के उपधान की विधि इस प्रकार से है - दो नंदी आदि सभी क्रियाएँ पूर्ववत् करें। प्रथम दिन एकभक्त, द्वितीय दिन उपवास, तृतीय दिन एकभक्त फिर लगातार पाँच आयम्बिल करें। उसके अन्त में दो गाथाओं की एवं दो व्रतों की वाचना एक ही साथ दे। यहाँ पाँच अध्ययनों में से दो अध्ययनों की दो गाथाओं द्वारा, तृतीय अध्ययन की बसंततिलका वृत्त द्वारा, चतुर्थ अध्ययन की शार्दूल विक्रीड़ित वृत्त के पूर्वार्द्ध द्वारा एवं पंचम अध्ययन की उसके उत्तरार्द्ध द्वारा वाचना दी जाती है - यह श्रुतस्तव की वाचना की उपधान-विधि है। इस प्रकार ये छ: उपधान बताए गए हैं। सातवें सिद्धस्तव में पहली तीन गाथाओं की वाचना उपधान के बिना ही दी जाती है, शेष गाथाएँ आधुनिक हैं (अतः उनके लिए उपधान आवश्यक नहीं है) - यह उपधान-वाचना की स्थिति है। इसका विस्तृत विवेचन निशीथसूत्र से उद्धृत 'उपधानप्रकरण' में है। उसके अनुसार उपधान-विधि इस प्रकार है नमस्कारमंत्र की उपधान-विधि में द्वादश दिन तप के होते हैं, वे इस प्रकार हैं - पहले आठ आयम्बिल करें फिर एक उपवास और फिर अंत में एक अट्टम, यानि निरन्तर तीन उपवास करें - यह नमस्कार-मंत्र की उपधान-विधि है। इरियावही उपधान की विधि भी नमस्कार-मंत्र के उपधान के समान ही है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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