Book Title: Jain Gruhastha ki Shodashsanskar Vidhi
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 149
________________ षोडश संस्कार आचार दिनकर गन्धैर्विना मणिमयाभरणैर्विनापि । लोकोत्तरं किमपि दृष्टि सुखं ददाति ।। 2 ।। यह बोलकर प्रतिमा का कलश से अभिषेक करे। पुष्प, अलंकार आदि उतार दे। फिर पुनः पुष्पांजलि लेकर निम्न दो छंदो को पढ़े :"विश्वानन्दकरी भवाम्बुधितरी सर्वापदां कर्त्तरी, मोक्षाध्वैकविलंघनाय विमला विद्या परं खेचरी । दृष्टयाभावितकल्मषापनयने बद्धप्रतिज्ञादृढा, रम्यार्हत्प्रतिमा तनोतु भविनां सर्वं मनोवाच्छितम् । । 1 । । परमतररमासमागमोत्थप्रसृमरहर्ष विभासिसन्निकर्षा जयति, जगदिनस्य शस्यदीप्तिः प्रतिमा कामितदायिनी जनानाम् ।। 2 ।।" यह छंद बोलकर पुनः पुष्पांजलि दे । पुनः पूर्व में कहे गए छंद के द्वारा धूप उत्क्षेपन करे और शक्रस्तव का पाठ करे। अब हाथ में पुष्पांजलि लेकर पृथ्वीमन्दाक्रान्ता (छंद) रूप ये दो श्लोक पढ़े : 119 "न दुःखमतिमात्रकं न विपदां परिस्फूर्जितं, न चापि यशसां क्षितिर्न विषमा नृणां दुःस्थता, न चापि गुणहीनता न परमप्रमोदक्षयो, जिनार्चनकृतां भवे भवति चैव निःसंशयम् ।। 1 ।। एतत्कृत्यं परममसमानन्दसंपन्निदानं पाताललोकः सुरनहितं साधुभिः प्रार्थनीयम् । Jain Education International सर्वारंभोपचयकरणं श्रेयकां सन्निधानं साध्यं सर्वेर्विमलमनसा पूजनं विश्वभर्तुः ।।2।। " यह छंद बोलकर पुष्पांजलि दे । फिर हाथ में धूप लेकर शार्दूल एवं आर्या छंद में ये दो श्लोक पढ़े : "कर्पूरागरूसिल्हचन्दनबलामांसीशशैलेयक, श्रीवासद्रुमधूपरालघुसृणैरत्यन्तमामोदितः । व्योमस्थः प्रसरच्छशांककिरणज्योतिः प्रतिच्छादको, धूमो धूपकृतो जगत्त्रयगुरोः सौभाग्यमुत्तंसतु । ।11 ।। सिद्धाचार्यप्रभृतीन् पंच गुरून् सर्वदेवगणमधिकम् । क्षेत्रे काले धूपः प्रीणयतु जिनार्चनेरचितः । 2 ।।” यह छंद बोलकर धूप उत्क्षेपन करे और शक्रस्तव का पाठ करे । पुनः पुष्पांजलि लेकर बसंततिलक एवं उपजाति छंद में निम्न श्लोक पढ़े - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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