Book Title: Jain Gruhastha ki Shodashsanskar Vidhi
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 148
________________ षोडश संस्कार पुष्टिमुपेयुषि प्रतिदिनं वृद्धिं गतं मंगलम् । तत्संप्रत्युपनीतपूजनविधौ विश्वात्मनामर्हतां, का पाठ करे। यह परमात्मा की पूजा की विधि है । स्नात्र विधि : भूयान्मंगलमक्षयं च जगते स्वस्त्यस्तु संघाय च ।।4।। " यह चार श्लोक बोलकर मंगल दीप प्रज्वलित करे। फिर शक्रस्तव ध्यानमभ्युत्तमानाम् । । 2 ।। आचार दिनकर अब यदि कोई श्रावक अर्हत् परमात्मा के प्रति भक्ति भावपूर्वक नित्य, पर्व पर अथवा अन्य किसी अवसर पर जिनदेव की स्नात्रपूजा करना चाहता है, तो उसके लिए यह विधि बताई गई है : पहले स्नात्र पीठ पर पूर्व में कह गए अनुसार दिक्पाल एवं ग्रहों की पूजा छोड़कर जिनप्रतिमा की पूजा करे तथा मंगलदीपक को छोड़कर आरती उतारे । पूर्वोपचार से युक्त गुरू के समक्ष चतुर्विध संघ के मिलने पर गीत-वाद्य आदि के उत्सव के समय हाथ में पुष्पांजलि लेकर "नमो अरिहंताणं नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्य", बोले फिर शार्दूल विक्रीडित एवं मालिनी छंद की राग में निम्न दो छंद पढ़े "कल्याणं कुलवृद्धिकारिकुशलंश्लाघार्हमत्यद्भुतं, सर्वाघप्रतिघातनं गुणगणालंकारविभ्राजितम् । कान्ति श्रीपरिरंभण प्रतिनिधिप्रख्यं जयत्यर्हतां, ध्यानं दानवमानवैर्विरचितं सर्वार्थसंसिद्धये । ।1 ।। --- भुवनभविकपापध्वान्तदीपायमानं परमतपरिघातप्रत्यनीकायमानम् । जिनपतीनां धृतिकुवलयनेत्रावश्यमंत्रायमाणं जयति "केवली भगवानेकः स्यादवादी मण्डनैविना । विनापि परिवारेण वंदितः प्रभुतोर्ज्जिते ।। 1 । । तस्येशितुः प्रतिनिधि सहजश्रियादयः । पुष्पैविनापि हि विना वसनप्रतानैः । । 118 Jain Education International - यह छंद बोलकर पुष्पांजलि अर्पण करे । पश्चात् निम्न श्लोक बोले"कर्पूरसिल्हाधिककाकतुण्डकस्तूरिकाचन्दनवन्दनीयः । For Private & Personal Use Only धूपो जिनाधीश्वरपूजनेऽत्र सर्वाणि पापानि दहत्वजस्रम् ।।" इस श्लोक के द्वारा सभी पुष्पांजलियों के बीच में धूप-उत्क्षेपन और शक्रस्तव का पाठ करे। फिर जल से भरे कलश को लेकर बसन्ततिलक छंद में यह श्लोक पढ़े - www.jainelibrary.org

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