Book Title: Jain Gruhastha ki Shodashsanskar Vidhi
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 133
________________ षोडश संस्कार आचार दिनकर - 103 ववरोविआ तस्स मिच्छामि दुक्कडं; तस्स उत्तरी करणेणं यावत् ठामि काउस्सग्गं"- यह द्वितीय वाचना है, इसे आठ आयम्बिल के अन्त में, अर्थात् आठवें आयम्बिल के दिन देते हैं। इसके बाद चूलिका की तीसरी वाचना-"अन्नत्थ उससिएण जाव वोसरामि", इत्यादि उपधान के अन्तिम दिन दें; यह द्वितीय ईर्यापथिक-सूत्र के उपधान की विधि है। शक्रस्तव के उपधान की विधि इस प्रकार है - नंदी आदि सभी क्रियाएँ पूर्ववत् करें। प्रथम दिन एकभक्त, द्वितीय दिन उपवास, तृतीय दिन एकभक्त, चतुर्थ दिन उपवास, पाँचवे दिन एकभक्त, छठे दिन उपवास और सातवें दिन एकभक्त करें - यहाँ तीन संपदाओं से युक्त निम्न प्रथम वाचना दें - "नमुत्थुणं अरिहंताण भगवंताणं आइगराणं तित्थयराणं सयंसंबुद्धाणं पुरिसुत्तमाणं पुरिससीहाणं पुरिसवरपुंडरीआणं पुरिसवरगंधहत्थीणं" - यह प्रथम वाचना है । फिर क्रमशः निरन्तर सोलह आयम्बिल करें। उसके अन्त में तीन संपदा से युक्त पांच-पांच पदों की निम्न वाचना दें - "लोगुत्तमाणं याव लोगपज्जोगराणं, अभयदयाणं, यावद्वोहिदयाणं, धम्मदयाणं जाव धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टीणं", यह द्वितीय वाचना है। फिर निरन्तर सोलह आयम्बिल करें, पुनः दो-दो एवं तीन-तीन पदों की तीन सम्पदाओं की वाचना दें -"अप्पडिहयवरनाणदंसणधराणं विअट्टछउमाणं जिणाणं जाववाणं तिन्नाणं तारयाणं बुद्धाणं बोहयाणं मुत्ताणं मोयगाणं सव्वन्नूणं सव्वदरिसीणं सिवमयलमरूयमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणरावित्तिसिद्धगइनामधेयंठाणं संपत्ताणं नमो जिणाणं जिय भयाणं", यह तृतीय वाचना है। इसके साथ ही - "जे अइया सिद्धा जे अ भविस्संति णागए काले। संपइय वट्टमाणा सव्वे तिविहेण वंदामि" - ऐसी अन्तिम गाथा की वाचना भी तृतीय वाचना के साथ ही दें। यह शक्रस्तव की वाचना की उपधान की विधि है। चैत्यस्तव उपधान की विधि का वर्णन इस प्रकार है - नंदी आदि सब विधि-विधान पूर्ववत् करें। प्रथम दिन एक भक्त, द्वितीय दिन उपवास, तृतीय दिन एकभक्त फिर एक साथ तीन आयम्बिल करें, फिर चैत्य-स्तव के तीन अध्ययनों की उसी समय एक साथ वाचना दें। वह इस प्रकार है - "अरिहंत चेइयाणं करेमि काउस्सग्गं वंदणवत्तिआए पूअणवत्तिआए सक्कारवत्तिआए सम्माणवत्तिआए बोहिलाभवत्तियाए निरूवस- ग्गवत्तियाए सद्धाए मेहाए जाव ठामि काउस्सग्गं अन्नत्थ उससिएणं जाव वोसिरामि" - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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