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षोडश संस्कार
आचार दिनकर
अमुकान्वयः अमुकदौहित्रः अमुकगोत्रीया, इयत्प्रवरा, अमुकज्ञातीया, अमुकान्वय, अमुकप्रपौत्री, अमुकपौत्री, अमुकपुत्री, अमुकगोत्रीया, इयत्प्रवरा, अमुकज्ञातीया, अमुकान्वय, अमुकप्रदौहित्री, अमुकगोत्रीया, इयत्प्रवरा, अमुकज्ञातीया, अमुकान्वया अमुकदौहित्री, अमुकावर्या तदेतयोर्वर्यावरयोर्वरवर्ययोर्निबिडो, विवाहसम्बन्धोऽस्तु शान्तिरस्तु पुष्टिरस्तु, तुष्टिरस्तु बुद्धिरस्तु धनसन्तानवृद्धिरस्तु अर्ह ऊँ ।"
फिर गृहस्थ गुरू वर-वधू से गंध, पुष्प, धूप और नेवैद्य द्वारा वैश्वानर (अग्नि) की पूजा कराए। उसके बाद वधू अंजली भर 'लावे' की अग्नि में आहुति दे । उसके पश्चात् पुनः उसी प्रकार वधू दाहिनी ओर तथा वर के बाँई ओर बैठे। इसके बाद गृहस्थ गुरू निम्न वेदमंत्र पढ़े :"ॐ अर्ह अनादि विश्वमनादिरात्मा, अनादिः, कालोऽनादिकर्म, अनादिः सम्बन्धों देहिनां देहानुमतानुगतानां क्रोधाहंकारछद्मलोभैः संज्वलनप्रत्याख्यानांवरणानन्तानुबन्धिभिः शब्द रूपरसगन्धस्पर्शेरिच्छानिच्छापरिसंकलितैः सम्बन्धोनुबंध: प्रतिबन्धः संयोगः सुगमः सुकृतः सुनिवृत्तः सुतुष्टः सुपुष्टः सुलब्धो द्रव्यभावविशेषेण अर्ह ॐ । “ यह वेदमंत्र पढ़कर पुनः इस प्रकार कहे "तो अमुक नामधारी आप दोनों का सम्बन्ध, सिद्ध, केवली, चतुर्निकायदेव, विवाह की प्रधान अग्नि, नर, नारी, राजा, जन, गुरू, माता-पिता, मातापक्ष ( ननिहाल ), पितापक्ष एवं जाति कुल तथा बन्धुओं को प्रत्यक्ष हो, अर्थात् ये सब इसके साक्षी हों । यह सम्बन्ध सुकृत अच्छी तरह अनुष्ठित, सुप्राप्त तथा सुसंगत है, अतः आप दोनों तेजपुंज अग्निदेव की प्रदक्षिणा करें।" यह कहकर उसी प्रकार अंजली - ग्रन्थि से बद्ध वधू एवं वर वैश्वानर (अग्नि) की प्रदक्षिणा करें। प्रदक्षिणा देकर पूर्व की भाँति बैठें। तीन लाजाओ की तीन प्रदक्षिणाओं में वधू को आगे और वर को पीछे रखें। दाहिनी ओर वधू को एवं बाई ओर वर को बैठाएं। यह प्रथम लाजाकर्म है। उन दोनो के आसन पर बैठ जाने के बाद गृहस्थगुरू निम्न वेद मंत्र का पाठ करें :
"ॐ अर्ह कर्मास्ति, मोहनीयमस्ति, दीर्घस्थितिरस्ति, निर्बडमस्ति, दुश्छेद्यमस्ति अष्टाविंशति प्रकृतिरस्ति क्रोधोऽस्ति, मानोऽस्ति, मायास्ति, लोभोऽस्ति, संज्वलनोऽस्ति प्रत्याख्यानावरणोऽस्ति, अप्रत्याख्यानावरणोऽस्ति, अनन्तानुबन्ध्यस्ति, चतुश्चतुर्विधोऽस्ति हास्यमस्ति रतिरस्ति, अरतिरस्ति, भयमस्ति, जुगुप्सास्ति, शोकोऽस्ति, पुंवेदोऽस्ति, स्त्रीवेदोऽस्ति
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