Book Title: Jain Gruhastha ki Shodashsanskar Vidhi
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 97
________________ षोडश संस्कार आचार दिनकर 67 वर-वधू के परिजन वर के घर में तथा कन्या के घर में तेल, धान्य आदि लेकर जाएं। वधू एवं वर के घर की वृद्धा नारियाँ धान्य, तेल लाने वाली उन नारियों को पुआ आदि पकवान दें। वहाँ देश - आचार एवं कुलाचार के अनुरूप धारणा आदि कार्य करें। तेलमर्दन, कुलकर, गणेशादि की स्थापना, कंकण बन्धन तथा विवाह की अन्य सभी औपचारिकताएँ वर-वधू के चंद्रबल में एवं विवाह सम्बन्धी नक्षत्र में करें । ― धूलिपूजा करवापूजा (चाकपूजा), सौभाग्यवतियों द्वारा पवित्रजल लाना आदि सभी मंगलकार्य, मंगलगीत वाद्य सहित देश के आचार एवं कुल के आचार के अनुरूप करें। उसके पश्चात् वर यदि अन्य ग्राम, नगर या देश में हो, तो उसकी वरयात्रा ( बारात ) कन्या के निवास स्थान की ओर प्रस्थान करे । उसकी यह विधि है - — इन दिनों में प्रथम दिन मातृका - पूजासहित पूर्व में बताए गए लोगों को भोजन प्रदान करें। उसके बाद दूसरे दिन अच्छी तरह से स्नान करके चंदन का लेप लगाकर वस्त्रों एवं गन्ध-माला से सुशोभित तथा सिर पर मुकुट लगाए हुए वर अश्व, गज या मानव- गाड़ी पर आरूढ़ होकर निकले। उसके साथ - साथ सुन्दर वस्त्र धारण करके, प्रमुदित होकर, मुँह में पान चबाते हुए सम्बन्धीजन तथा जाति के लोग अपनी संपत्ति के अनुसार अश्व आदि पर आरूढ़ होकर, या पैदल वर के साथ चलें । वर के दोनों ओर मंगलगान गाती हुई जाति की नारियाँ चलें। उसके आगे ब्राह्मण लोग गृहशान्ति मंत्र पढ़ते हुए चलें, वह मन्त्र इस प्रकार है “ऊँ अर्ह आदिमोऽर्हन्, अदिमो नृपः आदिमो नियन्ता, आदिमो गुरूः, आदिमः स्रष्टा, आदिमः कर्त्ता, आदिम भर्त्ता, आदिमो जयी, आदिमो नयी, आदिमःशिल्पी, आदिमो विद्वान्, आदिमो जल्पकः, आदिमः शास्ता, आदिमो रौद्रः, आदिमः सौम्यः, आदिमः काम्यः, आदिमः शरण्यः, आदिमो दाता, आदिमो वन्दयः, आदिमः स्तुत्यः, आदिमो ज्ञेयः, आदिमो ध्येयः, आदिमो भोक्ता, आदिमः सोढ़ा, आदिमः एकः, आदिमोऽनेकः, आदिमः स्थूलः, आदिमः कर्मवान्, आदिमोऽकर्मा, आदिमो आदिमो धर्मवित्, आदिमोऽनुष्ठेयः, आदिमोऽनुष्ठाता, आदिमः सहजः, आदिमो दशावान्, आदिमः सकलत्रः, आदिमोविकलत्रः, आदिमो विवोढ़ा, आदिमः ख्यापकः आदिमोज्ञापकः, आदिमो विदुरः, आदिमोकुशलः, आदिमो वैज्ञानिकः, आदिमः सेव्यः, आदिमो गम्यः, आदिमो विमृश्यः, आदिमो विमृष्टा, सुरासुरनरोरगप्रणतः प्राप्तविमलकेवलो, यो गीयते यत्यवतंसः, सकलप्राणिगणिहितो, दयालुरपरापेक्षः, परात्मा, परं ज्योतिः परं ब्रह्म, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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