Book Title: Jain Dharm ki Udarta
Author(s): Parmeshthidas Jain
Publisher: Johrimal Jain Saraf

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Page 10
________________ नम्र निवेदन (द्वितीयावृत्ति) एक वर्पके भीतर ही भीतर जैनधर्म की उदारताकी प्रथमावृत्ति प्रायः समाप्त हो चुकी थी। और अव द्वितीयावृत्ति आपके सामने है। जैन समाज ने इस पुस्तक को खूब अपनाया है । और गण्य मान्य अनेक आचार्य, मुनियों, त्यागियों और विद्वानों ने इस पर अपनी शुभ सम्मतियां भी प्रदान की हैं। (उनमें से कुछ पुस्तक के अन्त में प्रगट की गई है) यही पुस्तक की सफलता का प्रमाण है। सुधारप्रेमी प्रकाशक जी महोदय मुझे करीव ६ माह से प्रेरित कर रहे हैं कि मैं इस पुस्तक को संशोधित करके द्वितीय चार छपाने के लिये उनके पास भेज दूं और उदारता का 'द्वितीयभाग भी जल्दी तैयार कर दूं। किन्तु मैं उनकी आज्ञा का जल्दी पालन नहीं कर सका। अब आज उदारता की द्वितीयावृत्ति तैयार हो रही है। किन्तु द्वितीय भाग तो मैंने अभी तक प्रारम्भ भी नहीं कर पाया है। हां, इसके अन्त में 'परिशिष्ठ' भाग लगाया है उससे कुछ विशेष प्रमाण और भी जानने को.मिलेगे। 'परिशिष्ट भाग में विशाल जैनसंघ, संक्षिप्त जैनइतिहास, चीर और जैन सत्यप्रकाश आदि से सहायता ली गई है। अतः मैं उनके लेखकों का आभारी .. हूं। इसके बाद समय मिलते ही या तो मैं उदारता का द्वितीय भाग लिखूगा या एक ऐसा 'कथा संग्रह तैयार कर रहा हूं जिनमें उदारता पूर्ण कथायें देखने को मिलगी। . 'जैनधर्म की उदारता' का गुजराती भाषा में भी अनुवाद हुआ है और उसे 'दि०जैन युवक संघ सूरत' ने तथा अहमदाबाद के एक सज्जन ने प्रगट किया है। तथा इसका मराठी अनुवाद श्रीधर दादाधावते सांगली प्रकट कर रहे हैं । इस प्रकार उदारता का अच्छा प्रचार हुआ है। . जो रूढ़ि के गुलाम हैं, जो लकीर के फकीर हैं और जिन्हें

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