Book Title: Jain Dharm ki Udarta
Author(s): Parmeshthidas Jain
Publisher: Johrimal Jain Saraf

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Page 22
________________ जनधम को उदारतो फिर भी वह पुनः शुद्ध होकर आर्यिका होगई थी और स्वर्ग गई। (६) राजा मधु ने अपने माएडलिक राजा की स्त्री को अपने यहां. बलात्कार से रख लिया था और उससे विषय भोग करता रहा, फिर भी वह दोनों मुनि दान देते थे और अन्त में दोनों ही दीक्षा लेकर अच्युत स्वर्ग में गये । (७) शिवभूति ब्राह्मण की पुत्री देववती के साथ शम्भु ने व्यभिचार किया, बाद में वह भ्रष्ट देववती विरक्त होकर हरिकान्ता नामक आर्यिका के पास गई और दीक्षा लेकर स्वर्ग को गई । (८) वेश्यालंपटी अंजन चोर तो उसी भव से मोक्ष जाकर जौनयों का भगवान बन गया था । (६) मांसभक्षी मृगध्वज ने मुनिदीक्षा लेली और वह भी कर्म काटकर परमात्मा वन गया। (१०) मनुष्यभक्षी सौदास राजा मुनि होकर उसी भव से मोक्ष गया। इत्यादि सैकडौं उदाहरण मौजूद हैं जिनसे सिद्ध होता है कि जैनधर्म पतित पावन है। यह पापियोंको परमात्मा तक बना देने वाला है और सव से अधिक उदार है । (११) यमपाल चाण्डाल की कथा तो जैनधर्म की उदारता प्रगट करने को सूर्य के समान है । जिस चाण्डाल का काम लोगों को फांसी पर लटका कर प्राण नाश करना था वही अछूत कहा जाने वाला पापात्मा थोड़े से व्रत के कारण देवों द्वारा अभिपिक्त और पूज्य हो जाता है। यथा तदा तद्वतमाहात्म्यात्महाधर्मानुरागतः। सिंहासने समारोप्य देवताभिः शुभैर्जलैः ॥ २६ ॥ अभिपिच्य अहर्येण दिव्यवस्त्रादिभिः सुधीः। नानारत्नसुवर्णाद्यैः पूजितः परमादरात् ॥ २७॥ .

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