Book Title: Jain Dharm ki Udarta
Author(s): Parmeshthidas Jain
Publisher: Johrimal Jain Saraf

View full book text
Previous | Next

Page 60
________________ :: जैनधमाकी उदारता. mmmmmmmamerammarmmarrrrrrrrrrormerimenamimmmmmmmmmmmanner करता है। ग्रन्थकार ने भी ऐसे मुग्धजनों के इस कार्य को सुखकारी बतलाया है। . . . . . . इसी प्रकार और भी अनेक कथायें शास्त्रों में भरी पड़ी हैं जिन में शूद्रों को बहो अधिकार दिये गये हैं जो कि अन्य वर्गों को है। (३) सोमदत्त साली 'प्रति दिन जिनेन्द्र भगवान को पूजा करता था। चम्पानगर का एक ग्बाला मुनिराज से णमोकार मन्त्र सीख कर स्वर्ग गया। (४) अनंगसेना वेश्या अपने प्रेमी धनकीर्ति सेठ के मुनि हो जाने पर स्वयं भी दीक्षित हो गई और स्वर्ग गई । (५)एक ढीमरं (कहार) की पुत्री प्रियंगुलता सम्यक्त्वं में हड़ थी। उसने एक साधु के पाखण्ड की धज्जियां उड़ादी और उसे भी जैन बनाया था। (६) काणा नाम की ढीमर की लड़की की क्षुल्लिका होने की कथा-तो हम पहिलेही लिख आये हैं (७) देविल कुम्हार ने एक धर्मशाला बनवाई, वह जैनधर्मका श्रद्धानी था। अपना धर्मशाला में दिगम्बर मुनिराज को ठहराया और पुण्य के प्रताप से वह देव. होगया। (८) चामेक वेश्या जैनधर्मकी परम उपासिका थी। उसने जिन भवन को दान दिया था। उसमें शूद्र जाति के मुनि भी ठहरते थे। (ह)तेली जति की एक महिला मानकव्वे जैनधर्मः परः श्रद्धा रखती थी,. आर्यिका श्रीमति की वह पट्टशिष्या थी । उसने एक जिन मन्दिर भी बनवाया था . .. ...: इन उदाहरणों से शूद्रों के अधिकारों का-कुछ भास हो सकता. : है। श्वेताम्बर जैन शास्त्रों के अनुसार तो चाण्डाल जैसे अस्पृश्य , कहे जाने वाले शूद्रों को भी दीक्षा देने का वर्णन है । (१०) चित्त आर संभूति नामक चाण्डाल पुत्र जब वैदिकों के तिरस्कार से दुखी . होकर आत्मघात करना चाहते थे तब उन्हें जैन दीक्षा सहायक हुई और जैनों ने उन्हें अपनाया । (२१) हरिकेशी चाण्डाल भी. जब

Loading...

Page Navigation
1 ... 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119