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जैनधर्म की उदारता विशेषता दिखाई देती है तप में । चाण्डाल का पुत्र हरिकेश तप से ही अद्भुत ऐश्वर्य और ऋद्धि को प्राप्त हुआ था । यथा:सक्खं खु दीसइ तवो विसेसो, न दीसइ जाइविसेस कोई। सोवागपुत्तं हरिएससाई, जस्सेरिसा इढि महाणुभागा ॥
-उत्तराध्ययन सूत्र अ०१२ (१७) मथुरा के यमुन राजा ने ध्यानमग्न दण्ड मुनिराज का तलवार से घात किया । वाद में उस घातकी राजा ने मुनि दीक्षा ले ली। (म० क०)
(१८) मथुरा के राजा जितशत्रु के वेश्या पत्नी थी । उसका नाम काला था। उस वेश्या से कालवेशी कुमार हुआ और फिर उस वेश्या पुत्र ने युवावस्था में मुनि दीक्षा ग्रहण की। (उत्तराध्ययन सूत्र अ०२ सू०३)
(१६) आजीवक सम्प्रदाय के अनुयायी कुम्हार सदालपुत्र को स्वयं भगवान महावीर स्वामी ने श्रावक के १२ व्रत दिये थे। और उसकी स्त्री अग्निमित्रा भी जैन धर्म में दीक्षित हुई थी । (उवासगदस्सओ० अ०६)
(२०) महावीर स्वामी के समय में एक ईरानी राजकुमार अभयकुमार के संसर्ग से जैनधर्म में श्रद्धालु हुआ था । आर्दिक नामक राजकुमार ने महावीर स्वामी के संघ में सम्मिलित होकर मुनिदीक्षा ली थी। और वह मोक्ष गया था (सूत्रकृतांग)
(२१) अब्दुरहमान फूलवाला नामक एक मुसलमान रत्नजड़िया देहली के थे। उन्होंने संवत १९७० के पूर्व स्थानकवासी जैनधर्म की शरण ली थी।
(२२) कुछ ही समय पूर्व श्वेताम्बराचार्य श्री. विजयेन्द्र सुरि ने जर्मन महिला मिस चारलौटी क्रौज़ को जैनधर्म की दीक्षा दी