Book Title: Jain Dharm ki Udarta
Author(s): Parmeshthidas Jain
Publisher: Johrimal Jain Saraf

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Page 110
________________ जैनधम की उदारता १०० (४) त्यागी नौरंगलालजी यह पुस्तक बहुत अच्छी है। ऐसी पुस्तकों से हो जैनधर्म काउद्धार हो सकता है। जैनों को इसे पढ़कर अमल करना चाहिये । (५) न्यायकाव्यतीर्थ श्वे० मुनि श्री हिमांशु विजय जो तर्कालंकार M जैन समाज में ऐसे निबंधों की आवश्यक्ता है। अनुदार पंडित और मुनि लोग इसे पढ़ेंगे तो उन्हें भी सन्तोष होगा। पुस्तक शाख प्रमाण पूर्वक लिखी गई है । (६) न्यायतीर्थ श्वे० मुनि श्री न्यायविजयजी महाराज लेखक का यह प्रयत्न योग्य और प्रशंसनीय है। इसे और भी विस्तार से लिखकर जैनधर्म की उदारता पर पड़ा हुआ परदा हटाने का प्रयत्न होना चाहिये । (७) श्वे० मुनि श्री० तिलकविजयजी महाराज जैनधर्म की उदारता पुस्तक को पढ़ कर मालूम हुआ कि दिग स्वर आम्नाय के धर्म नेता कहलाने वाले परितों की अपेक्षा पं परमेडीदासजी न्यायतीर्थ ने जैनधर्म के वास्तविक स्वरूपको अधिक प्रमाण में समझा है । मेरी समझ में ऐसी पुस्तकों का जितना अधिक प्रचार होगा उतना ही समाज को मिध्यात्व छूटने का अवसर मिलेगा | (८) १० सुनि श्री फूलचन्दजी धर्मोपदेष्टा मैं मानता हूं कि इस पुस्तक का प्रचार प्रत्येक जैन के घरों तक होना चाहिये । यदि यह पुस्तक १८वीं या १६वीं शताब्दी में लिखी जाती तो लेखक को निर्विवाद ऋषि कहने लगते। इसमें

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