Book Title: Jain Dharm ki Udarta
Author(s): Parmeshthidas Jain
Publisher: Johrimal Jain Saraf

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Page 105
________________ प श्वेताम्बर जैन शास्त्रों में उदारता के प्रमाण ६५ थी और उसका नाम 'सुभद्राकुमारी रक्खा था। अभी वह जैनधर्म का पालन करती हैं और ग्वालियर स्टेट में रहती हैं। वह श्वेताम्बर मन्दिरों में पूजा करती हैं और जैनों को उनके साथ खान पान में कोई परहेज नहीं है। (२३) श्वेताम्बराचार्य नेमिसूरि जी महाराज ने वर्तमान में कई शूद्रों को मुनि दीक्षा दी है । श्वे० में अनेक साधु शूद्र जाति के अभी भी हैं। (२४) श्रीमद राजचन्द्र आश्रम अगास (गुजरात) के द्वारा जैन धर्म प्रचार अभी भी हो रहा है। वहां हजारों पाटीदार स्त्री पुरुषों को जैनधर्म की दीक्षा दी गई है। वे सब वहांके जैनमन्दिरों में भक्ति-भाव से पूजा, स्वाध्याय और आत्म ध्यान आदि करते हैं। ___ इस प्रकार श्वेताम्बर शास्त्रों में जैनधर्म की उदारता के अनेक प्रमाण भरे पड़े हैं। उनका उपयोग करन न करना श्रावकों की बुद्धि पर आधार रखता है। मात्र इन २४ उदाहरणों से बिलकुल स्पष्ट हो जाता है कि जैनधर्म परम उदार है । ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र तो क्या किन्तु चाण्डाल, अछूत, विदेशी, म्लेच्छ, मुसलमान आदि भी जैनधर्म धारण करके स्वपर कल्याण कर सकते हैं। धर्म के लिये जाति का विचार नहीं है। उसके लिये तो आत्मशुद्धि की आवश्यकता है। एक जगह क्या ही अच्छा कहा है कि:-- एहु धम्मु जो आयरह, बंभणु सुद्दवि कोइ । सो सावहु, किं सावयह अण्णु कि सिरि मणि होइ॥ -श्रीदेवसेनाचार्य। अर्थात्-इस जैनधर्म का जो भी आचरण करता है वह चाहे ब्राह्मण हो चाहे शूद्र हो या कोई भी हो, वही श्रावक (जैन)

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