Book Title: Jain Dharm ki Udarta
Author(s): Parmeshthidas Jain
Publisher: Johrimal Jain Saraf

View full book text
Previous | Next

Page 77
________________ वैवाहिक उदारता ६७ विद्याधर गरुड़वेग की कन्या गंधर्वदत्ता को विवाहा था । ( उत्तर. पुराण पर्व ७५ श्लोक ३२०-४४ ) जीवंधरकुमार वैश्य पुत्रके नाम से ही प्रसिद्ध थे । कारण कि वे जन्मकाल से ही वैश्य सेठ गंधोत्कटके यहां पले थे और उन्हींके पुत्र कहे जाते थे । विजातीय विवाह के विरोधियों का कहना है कि कुछ भी हो, मगर जीवंधरकुमार थे तो क्षत्रिय पुत्र ही । उन पण्डितों की इस बात को मानने में भी हमें कोई एतराज नहीं है । कारण कि फिर भी विजातीय विवाह की सिद्धि होती है । यथा जीवंधर कुमार क्षत्रिय थे, उनने वैश्रवणदत्त वैश्य की पुत्री सुरमंजरी से विवाह किया था । (उत्तर० पर्व ७५ श्लोक ३४७ और ३७२) इसी प्रकार कुमारदत्त वैश्य की कन्या गुणमाला का भी जीवंधर स्वामी के साथ विवाह हुआ था (उत्तर० पर्व ७५ ) इसके अतिरिक्त जीवंधर ने धनपति (क्षत्रिय) राजा की कन्या पद्मोत्तमा को विवाहा था । सागरदत्त सेठ वैश्य की लड़की विमला से विवाह किया था । (उत्तर० पर्व ७५ श्लोक ५८७) तात्पर्य यह है कि जीवधरको क्षत्रिय मानिये या वैश्य, दोनों हालत में उनका विजातीय विवाह होना सिद्ध है। फिर भी वे मोक्ष गये हैं । १५ - शालिभद्र सेठ ने विदेशमें जाकर अनेक विदेशीय एवं विजातीय कन्याओं से विवाह किया था । B १६- अग्निभूत स्वयं ब्राहारण था, उसकी एक स्त्री ब्राह्मणी थी और एक वैश्य थी । यथा: - विप्रस्तवाग्निभूताख्यस्तस्यैका ब्राह्मणी प्रिया । परा वैश्यसुता, सूनुर्ब्राह्मण्यां शिवभूतिभाक् ॥ दुहिता चित्रसेनाख्या विट्सुतायामजायत ॥ । ( उत्तरपुराण पर्व ७५ श्लोक ७१-७२ ) १७ - अग्निभूतकी वैश्य पत्नीसे चित्रसेना कन्या हुई और वह

Loading...

Page Navigation
1 ... 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119