Book Title: Jain Dharm ki Udarta
Author(s): Parmeshthidas Jain
Publisher: Johrimal Jain Saraf

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Page 78
________________ ६५ जैनधर्म की उदारता देवशर्मा ब्राह्मणको विवाही गई । (उत्तरपुराण पर्व ७५ श्लोक ७३) १८ - तद्भवं मोक्षगामी महाराजा भरतने ३२ हजार म्लेच्छ. कन्याओं से विवाह किया था। भगर उनका दरजा कम न हुआ था । जिन म्लेच्छ कन्याओं को भरत ने विवाहा था वे म्लेच्छ धर्म, कर्म विहीन थे । यथा . इत्युपायैरुपायज्ञः साधयन्म्लेच्छभूभुजः । तेभ्यः कन्यादिरत्नानि प्रभोभग्यान्युपाहरत् ॥ १४९॥ धर्मकर्मभूता इत्यमी म्लेच्छका मताः ॥ १४२॥ --- आदिपुराण पर्व ३१ । पाठको ! विचार तो करिये । इन धर्म-कर्म विहीन म्लेच्छों से, अपनी परस्परकी उपजातियां कुछ गई बीती तो नहीं हैं । तब फिर · कमसे कम उपजातियों में परस्पर विवाह सम्बन्ध क्यों नहीं चाल कर देना चाहिये ? 7 १६ -- श्रीकृष्णचन्द्रजीने अपने भाई गजकुमारका विवाह क्षत्रिय कन्याओंके अतिरिक्त सोमशर्मा ब्राह्मणकी पुत्री सोमासे भी किया. था । (हरिवंशपुराण, न० जिनदास ३४-२६ तथा हरिवंशपुराण जिनसेनाचार्य कृत ) '२० - मदनवेगा 'गौरिक' जातिकी थी । बसुदेवजी की 'गौरिक' जाति नहीं थी । फिर भी इन दोनों का विवाह हुआ था। यह अन्तर्जातीय विवाह का अच्छा उदाहरण है । (हरिवंशपुराण जिनसेनाचार्य कृतं ) २१ -- सिंहक नाम के वैश्य का विवाह एक कौशिक वंशीय. क्षत्रिय कन्यासे हुआ था । २२- जीवंधर कुमार वैश्य थे, फिर भी राजा गयेन्द्र (क्षत्रिय)

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