Book Title: Jain Dharm ki Udarta
Author(s): Parmeshthidas Jain
Publisher: Johrimal Jain Saraf

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Page 31
________________ वर्ण परिवर्तन ___ अर्थात् ब्राह्मण, क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र तो आचरण के भेद से कल्पित किये गये हैं। किन्तु जब वे जैन धर्म धारण कर लेते हैं तव सभी को अपने भाईके समान ही समझना चाहिये । इसीसे मालूम होगा कि जैनधर्म कितना उदार है और उसमें आते ही प्रत्येक व्यक्ति के साथ किस प्रकार से प्रेम व्यवहार करने का उपदेश दिया गया है । किन्तु जैनधर्म को इस महान उदारता को जानते हुये भी जिनकी दुवुद्धि में जाति मद का विष भरा हुआ है उनसे क्या कहा जाय ? अन्यथा जैनधर्म तो इतना उदार है कि कोईभी मनुष्य जैन होकर तमाम धार्मिक एवं सामाजिक अधिकारों को प्राप्त कर सकता है। वर्ण परिवर्तन । कुछ लोगोंको ऐसीधारणा है कि जाति भले ही बदल जाय मगर वर्ण परिवर्तन नहीं हो सकता है, किन्तु उनकी यह भूल है कारण कि वर्ण परिवर्तन हुये विना वर्ण की उत्पत्ति एवं उसकी व्यवस्था भी नहीं हो सकती थी। जिस ब्राह्मण वर्ण को सर्वोच्च माना गया है उसकी उत्पत्ति पर तनिक विचार करिये तो मालूम होगा कि वह तीनों वर्गों के व्यक्तियों में से उत्पन्न हुआ है। आदिपुराण में लिखा है कि जब भरत राजा ने ब्राह्मण वर्ण स्थापित करने का विचार किया तब राजाओं को आज्ञा दी थी कि:सदाचारैनिरिष्टरनजीविभिरन्विताः। अयास्मदुत्सवे यूयमायातेति प्रथक् प्रथक् ॥पर्व ३८-१०॥ अर्थात-आप लोग अपने सदाचारी इष्ट मित्रों सहित तथा नौकर चाकरों को लेकर आज हमारे उत्सव में आओ । इस प्रकार भरत चक्रवर्तीने राजा प्रजा और नौकर चाकरों को बुलाया था, उन्

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