Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 02
Author(s): Haribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-२/१३ ___ “१८ दिन तक आहार का त्याग करके पंचपरमेष्ठी के चिन्तन पूर्वक देह छोड़कर वह सिंह दूसरे स्वर्ग में देव हुआ। वहाँ से आयु पूर्ण कर यह तुम्हारा (व्रजजंघ राजा का) मंत्री मतिवर हुआ है।
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हे राजा ! अब आठवें भव में तुम जिस समय ऋषभदेव तीर्थंकर होगे, उसीसमय यह मतिवर मंत्री का जीव तुम्हारा पुत्र (भरत चक्रवर्ती) होकर उसी भव से ही मोक्ष प्राप्त करेगा।" -इसप्रकार मुनिराज ने राजा वज्रजंघ को मतिवर मंत्री के जीव का वृतांत बताया।
मतिवर मंत्री अपने भूत और भविष्य के भव की उत्तम चर्चा मुनिराज के श्रीमुख से सुनकर बहुत आनन्दित हुआ।
परमात्मा के प्रतीक : अष्टद्रव्य जल से निर्मल नाथ ! चन्दन से शीतल प्रभो ! अक्षत से अविनाश, पुष्प सदृश कोमल विभो ! रत्नदीप सम ज्ञान, षट्रस व्यंजन से सुखद । सुरभित धूप समान, सरससु-फल सम सिद्ध पद ।।