Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 02
Author(s): Haribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 71
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-२/६९ अहा ! अंजना को मुनिराज के दर्शन से जो प्रसन्नता हुई, उसका वर्णन नहीं किया जा सकता ? आनंद से उसकी नेत्र-पलक झपकना भूल गये...। अहो, इस घनघोर वन में हमें धर्मपिता मिले, आपके दर्शन से हमारा दुःख दूर हो गया, आपके वचनों से हमें धर्मामृत मिल गया...आप परम शरणरूप हो – ऐसा कहकर बारम्बार नमस्कार करने लगीं। निस्पृही मुनिराज तो उसे धर्म का उपदेश देकर आकाशमार्ग से विहार कर गये। मुनिराज के ध्यान द्वारा पवित्र हुई इस गुफा को तीर्थसमान समझकर, दोनों सखी धर्म में सावधान होकर वहाँ रहने लगीं। कभी वे जिनभक्ति करतीं और कभी मुनिराज को याद करके वैराग्य से शुद्धात्मतत्त्व की भावना भातीं......। इसप्रकार धर्म की साधनापूर्वक समय निकल गया और योग्य काल में (चैत सुदी पूर्णिमा) के दिन अंजना ने एक मोक्षगामी पुत्ररत्न को जन्म दिया......जो आगे चलकर वीर हनुमान के नाम से विख्यात हुआ। (वे हनुमान आत्मज्ञानी धर्मात्मा थे.....उनके जीवन के आनंदकारी प्रसंग को अगली कहानी में पढिये।) होकर सुख में मग्न न फूले, दुःख में कभी न घबराये। पर्वत-नदी-श्मशान-भयानक, अटवी से नहीं भय खावे॥

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