Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 02
Author(s): Haribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-२/७० आत्मज्ञानी वीर हनुमान (अंजना-माता के साथ पुत्र-हनुमान की चर्चा)
वन में मुनिराज के दर्शन से अंजना को परम हर्ष हुआ था, उसके कितने ही समय बाद अंजना सती ने वन की गुफा में पुत्र हनुमान को जन्म दिया..... चरमशरीरी- मोक्षगामी पुत्र के जन्म से वन के वृक्ष भी हर्ष से खिल उठे और हिरन-मोर आदि पशु-पक्षी भी आनंद से नाच उठे। पाठकगण ! अलेकी आरंद मनाया होगा, क्योंकि जैसे महावीर हमारे भगवान हैं, वैसे ही हनुमान भी हमारे भगवान हैं।
पश्चात् सती अंजना के मामा उस वन में आये और अंजना तथा हनुमान को अपनी नगरी में (नदी के बीच में हनुरुह' नामक द्वीप में) ले गये.....और वहीं सब आनंद से रहने लगे। देखो, महान पुण्यवान और आत्मज्ञानी ऐसा वह धर्मात्मा बालक 'हनु' आनंद से बड़ा हो रहा है। अंजना-माता अपने लाडले बालक को उत्तम संस्कार दे रही है, और बालक की महान चेष्टाओं को देखकर आनंदित हो रही है। ऐसे अद्भुत प्रतापी बालक को देखकर जीवन के सभी दुःखों को वह भूल गयी है और आनंद से जिनगुणों में चित्त लगाकर जिनभक्ति कर रही है, तथा हमेशा वनवास के समय गुफा में देखे उन मुनिराज को बारम्बार याद करती है।
बालक हनुमान भी रोज माता के साथ ही जिन-मंदिर जाता है, वह वहाँ देव-गुरु-शास्त्र की पूजा करना सीख रहा है और मुनियों के संघ को देखकर आनंदित होता है।
एक बार बालक हनुमान से माता अंडस मूलती है . वेग हनुमान ! तुम्हें क्या अच्छा लगता है ?"
हनुमान कहते हैं- “माँ, मुझे तो एक तुम अच्छी लगती हो और दूसरा आत्मा का सुख अच्छा लगता है।"