Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 02
Author(s): Haribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-२/४१
एक था हाथी एक था हाथी.....बहुत ही बड़ा हाथी ! बहुत ही सुन्दर हाथी ! यह बात रामचन्द्रजी के समय की है।
राजा रावण एक समय लंका की ओर जा रहे थे, तभी बीच में श्री सम्मेदशिखर-क्षेत्र को देखकर रावण को बहुत खुशी हुई और पास में ही उसने पड़ाव डाला। - वहाँ एकाएक मेघ-गर्जना की आवाज सुनाई देने लगी, लोग भय से यहाँ-वहाँ भागने लगे, लश्कर के हाथी, घोड़े आदि भी डर से चीत्कार करने लगे। रावण ने इस कोलाहल को सुनकर देखा कि एक बहुत मोटा
और अत्यंत बलवान हाथी झूमता-झूमता आ रहा है, यह उसकी ही गर्जना है और उससे ही डरकर लोग भाग रहे हैं, हाथी बहुत ही सुन्दर था। उस मदमस्त हाथी को देखकर रावण खुश हुआ, उसे उस हाथी के ऊपर सवारी करने का मन होने लगा, हाथी को पकड़ने के लिए वह आया और हाथी के सामने गया, रावण को देखते ही हाथी उसके सामने ही दौड़ने
लगा, लोग आश्चर्य से देखने लगे कि अब क्या होगा ? . राजा रावण बहुत ही बहादुर था, ‘गजकेली' में अकेले ही हाथी के साथ खेलने की कला में होशियार था। पहले उसने अपने कपड़ों का गट्ठा बनाकर हाथों के सामने फेंका, हाथी उस कपड़े को सूंघने के लिए रुक गया, उसी समय छलांग मारकर उस हाथी के मस्तक के ऊपर चढ़ गया और उसके कुंभस्थल पर मुट्ठी से प्रहार करने लगा।
____ हाथी घबरा गया, उसने सूंड ऊपर करके रावण को पकड़ने की बहुत चेष्टा की, फिर भी रावण उसके दोनों दंतशूल के बीच से सरक कर