Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 02
Author(s): Haribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 62
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-२/६० ... समय में ऐसी घटना घटी कि उसी वादिरसार भील को कोई महा भयंकर विचित्र रोग हुआ, औषधि द्वारा अनेक उपाय करने पर भी वह रोग दूर न हुआ। “औषधि के रूप में यदि कौए का माँस खाओगे, तो रोग मिट जायेगा।" - ऐसा एक मूर्ख वैद्य ने कहा, लेकिन वादिरसार भील अपनी प्रतिज्ञा में दृढ़ था। __उसने कहा- “मरण हो तो भले ही हो जावे, परन्तु मैं कोए का माँस कभी नहीं खाऊँगा।" वादिरसार के एक मित्र अभयकुमार के जीव ने यह बात सुनी और वह उसे समझाने के लिए वादिरसार के पास आ रहा था। इसीसमय रास्ते में उसने एक यक्षदेवी को उदासचित्त बैठे देखा। तब उस मित्र ने उसकी उदासी का कारण पूछा ? यक्षदेवी (रानी चेलना के जीव) ने कहा- “हे भाई! तुम अपने मित्र वादिरसार के पास जा रहे हो, उसे कौए के माँस का त्याग है; लेकिन यदि तुम जाकर उसे दवा के रूप में कौए का माँस खाने के लिए कहोगे और कदाचित् वह प्रतिज्ञा से भ्रष्ट होकर मरण से बचने के लिए कौए का माँस खावेगा तो मरकर नरक में जावेगा, अत: उसकी दशा का विचार करके मैं दुःखी हूँ।" उससमय उसे आश्वासन देकर, वह कुशल मित्र वादिरसार भील के पास आया और उसकी परीक्षा लेने के लिए कहा - “कौए का माँस खाओगे तो तुम्हारा रोग मिट जावेगा। दूसरी कोई दवा उपयोगी नहीं है।" जब वह नहीं माना, तब उसने और भी दृढ़ता के साथ कहा – “भाई ! हठ छोड़ दो, व्यर्थ ही मरण हो जायेगा। एक बार औषधि के रूप में कौए का माँस खा लो, अच्छे हो जाने पर फिर व्रत ले लेना।"

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