Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 02
Author(s): Haribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-२/५९
अहिंसा धर्म की कहानी (राजा श्रेणिक, रानी चेलना तथा अभयकुमार का पूर्वभव)
एक बार राजा श्रेणिक की राजधानी राजगृही में तीर्थंकर परमात्मा महावीर प्रभु पधारे। उनके समवशरण में आये राजा श्रेणिक ने प्रभु का उपदेश सुनकर गौतम स्वामी से पूछा -
“हे देव ! मेरे पूर्वभव की कथा कहिये।" गौतम स्वामी ने अपने दिव्यज्ञान के द्वारा जानकर कहा -
"हे श्रेणिक ! सुनो ! दो भव पूर्व में तुम भीलराजा थे, उस समय तुमने माँस-त्याग की एक प्रतिज्ञा ली थी, उसके फल में तुम स्वर्ग में देव हुये, फिर यहाँ के राजा हुये हो।
पूर्वभव में तुम विंध्याचल में “वादिरसार' नाम के भील थे, वहाँ तुम शिकार करते और माँस खाते थे। एकबार महाभाग्य से तुम्हें जैन मुनिराज के दर्शन हुए।"
मुनिराज ने कहा - "माँसाहार महापाप है, उसे तू छोड़ दे।"
तुमने भद्रभाव से कहा – “प्रभो! माँस का तो हमारा धन्धा है, उसे मैं सर्वथा नहीं छोड़ सकता। फिर भी
हे स्वामी ! आपके बहुमानपूर्वक मैं कोए के माँस को छोड़ता हूँ। भले ही प्राणान्त क्यों न हो जाये, पर मैं कौए का माँस कभी नहीं खाऊँगा।" श्री मुनिराज ने उसे भव्य जानकर यह प्रतिज्ञा दे दी। .. हे श्रेणिक ! उसके बाद कुछ ही