Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 02
Author(s): Haribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 44
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-२/४२ नीचे उतर गया । इसप्रकार रावण ने कई बार हाथी के साथ खेल कर हाथी को थका दिया और फिर रावण हाथी की पीठ पर.चढ़ गया। जैसे हाथी भी राजा रावण को समझ गया होवे - इसतरह शांत होकर विनयवान सेवक की भाँति खड़ा हो गया । रावण उसके ऊपर बैठकर पडाव की ओर आया। वहाँ चारों ओर जय-जयकार होने लगी। रावण को यह हाथी बहुत अच्छा लगा, इसलिये उसे वह लंका ले गया। लंका जाकर उस हाथी की प्राप्ति की खुशी में उत्सव मनाकर उसका नाम त्रिलोकमण्डल रखा। रावण के लाखों हाथियों में से वह प्रमुख हाथी था। __ एक बार रावण सीता का हरण करके ले गया। तब राम-लक्ष्मण ने लड़ाई करके रावण को हराया और सीता को लेकर अयोध्या आये, उसीसमय लंका से उस त्रिलोकमण्डन हाथी को भी साथ ले आये। रामलक्ष्मण के ४२ लाख हाथियों में वह सबसे बड़ा था और उसका बहुत मान था। राम के भाई भरत अत्यंत वैरागी थे, जैसे शिकारी को देखकर हिरण भयभीत होता है, उसीप्रकार भरत का चित्त संसार के विषय-भोगों से अत्यंत भयभीत था और वे संसार से विरक्त होकर मुनि होने के लिए उत्सुक थे। जिसप्रकार पिंजरे में कैद सिंह खेदखिन्न रहता है और वन में जाने की इच्छा करता है, उसी प्रकार वैरागी भरत गृहवासरूपी पिंजरे से छूट कर वनवासी मुनि बनना चाहते थे। लेकिन राम-लक्ष्मण ने आग्रह करके उन्हें रोक लिया। उन्होंने उदास मन से कुछ समय तो घर में बिताया, लेकिन अब तो रत्नत्रयरूपी जहाज में बैठकर संसार-समुद्र से पार होने के लिए तैयार थे।

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