Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 02
Author(s): Haribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 50
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-२/४८...... श्री देशभूषण-केवली प्रभु की वाणी में हाथी की सरस बात सुनकर राम-लक्ष्मण आदि सभी आनंदित हुए। हे भव्य पाठको! तुम्हें भी आनंद आया होगा। और हाँ ! तुम भी हाथी के समान अपनी आत्मा को जिनधर्म में लगाओगे और मान-माया आदि सभी प्रकार के विकारी भावों को छोड़ोगे, तो तुम्हारा भी कल्याण होगा। हाथी और भरत के पूर्वभव की बात सुनकर राम-लक्ष्मण आदि सभी को आश्चर्य हुआ। भरत के साथ एक हजार राजा भी जिन दीक्षा लेकर मुनि हुए। भरत की माता कैकेयी भी जिनधर्म की परम भक्त बनकर, वैराग्य प्राप्त कर आर्यिका हुई। उनके साथ ३०० स्त्रियों ने भी पृथ्वीमति माताजी के पास जिनदीक्षा ली। (बाद में सीताजी भी उन पृथ्वीमति माताजी के संघ में आ गयी थी।) त्रिलोकमण्डन हाथी का हृदय तो केवली भगवान के दर्शन से फूला नहीं समा रहा था, पूर्वभव को सुनकर और आत्मज्ञान प्राप्त करके वह एकदम शांत हो गया ! सम्यग्दर्शन सहित वह हाथी वैराग्यपूर्वक रहता और श्रावक के व्रतों का पालन करता है, पन्द्रह-पन्द्रह दिन या महिनेमहिने भर के उपवास करता है। अयोध्या के नगरजन बहुत वात्सल्यपूर्वक उसे शुद्ध आहार-पानी के द्वारा उसको भोजन कराते हैं। ऐसे धर्मात्मा हाथी को देखकर सब उसके ऊपर बहुत प्रेम करते हैं। तप करने से धीरेधीरे उसका शरीर दुर्बल होने लगा और अन्त में धर्मध्यान पूर्वक, देह छोड़कर वह छठवें स्वर्ग में गया..... और अल्पकाल में मोक्ष प्राप्त किया। बालको, हाथी की सरस चर्चा पूरी हुई, उसे पढ़कर, तुम भी हाथी जैसे बनो, हाथी जैसे मोटे नहीं, लेकिन हाथी जैसे धर्मात्मा हो जाओ..... आत्मा को समझकर मोक्ष की साधना करो। जो स्वभाव में जीता है, वह सुखी और जो संयोगों में जीता है, वह दुःखी।

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