Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 02
Author(s): Haribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
View full book text
________________
जैनधर्म की कहानियाँ भाग-२/२४
वज्रबाहु का वैराग्य भगवान ऋषभदेव के इक्ष्वाकुवंश में, ऋषभदेव से लेकर मुनिसुव्रत तीर्थंकर तक के काल में असंख्य राजा मुनि होकर मोक्षगामी हुए। उनमें मल्लिनाथ भगवान के मोक्षगमन के बाद अयोध्या नगरी में विजय नाम के राजा हुए, उनके पौत्र वज्रबाहु कुमार की हस्तिनापुर की राजपुत्री मनोदया के साथ शादी हुई, शादी के थोड़े ही दिन बाद कन्या का भाई उदयसुंदर अपनी बहिन को लेने के लिए आया । मनोदया उसके साथ जाने लगी, उसी समय वज्रबाहु भी मनोदया के प्रति तीव्र प्रेम के वश उन्हीं के साथ ससुराल जाने लगे।
उदयसुंदर, मनोदया, वज्रबाहु आदि सभी आनंद पूर्वक अयोध्या से हस्तिनापुर की ओर जा रहे थे। साथ में उनके मित्र २६ राजकुमार और उनकी अनेक रानियाँ भी पर्वतों और वनों की रमणीय शोभा देखते हुये जा रहे थे। तभी युवा राजकुमार वज्रबाहुकी नजर एकाएक रुक गयी......।
___अरे, यहाँ दूर कोई अद्भुत सुन्दरता दिखाई दे रही है। वह क्या है ? या तो यह कोई वृक्ष का तना है, या सोने का कोई स्तंभ है या कोई मनुष्य है । जब पास आकर देखा तो कुमार आश्चर्य चकित रह गये। ___ अहो ! नग्न दिगम्बर मुनिराज ध्यान में खड़े हैं, मार
आँखें बंद और लटकते हुए हाथ, संसार को भूलकर आत्मा में अन्दर-अन्दर गहराई में उतर कर कोई
A.
.-
--
-":..LA..