Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 02
Author(s): Haribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 32
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-२/३० ___- ऐसा कहकर वज्रबाहु एवं उदयसुंदर के साथ सब कुमार चलने लगे.....और मुनिराज के पास आये......। -सव सततका कासकाम गुणसागर महाराज के सामने सभी ने हाथ जोड़कर विनयपूर्वक नमस्कार किया फिर वज्रबाहु ने कहा “हे स्वामी ! हमारा मन संसार से बहुत भयभीत है, आपके दर्शन से हमारा मन पवित्र हुआ है। अब, हमें भवसागर को पार करनेवाली ऐसी भगवती दीक्षा अंगीकार कर संसार कीचड़ में से बाहर निकलने की इच्छा है, इसलिए हे प्रभु ! हमें दीक्षा दीजिए।" जो चैतन्य साधना में मग्न है और अभी-अभी सातवें से छठवें गुणस्थान में आये हैं, ऐसे उन मुनिराज ने राजकुमारों की उत्तम भावना को जानकर कहा- “हे भव्यो ! अवश्य धारण करो, यह मोक्ष के कारणरूप भगवती जिनदीक्षा ! तुम सभी अत्यंत निकटभव्य हो, जो तुम्हें मुनिव्रत की भावना जागृत हुई" - ऐसा कहकर आचार्यदेव ने वज्रबाहु सहित २६ राजकुमारों को मुनिदीक्षा दी। राजकुमारों ने मस्तक के कोमल केशों (बालों) को अपने हाथों से लोंच करके पंच महाव्रत धारण किये । राजपुत्री और रागपरिणति दोनों को त्याग दिया, देह का मोह छोड़कर चैतन्यधाम में स्थिर हुए और शुद्धोपयोगी होकर आत्म-चिंतन में एकाग्र हुए। धन्य है उन मुनिवरों को।

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