________________ "नाहं रामो न मे वांछा, भावेषु च न मे मनः / शान्तिमास्थातुमिच्छामि, स्वात्मन्येव जिनोयथा" | 7 || (योगवाशिष्ठ) अर्थः- "मैं राम नहीं हूँ, मेरी कोई इच्छा नहीं, पदार्थो में मेरा मन नहीं / जिस प्रकार 'जिन' अपने आत्मा में शान्त भाव से स्थिर रहते हैं उसी प्रकार शांत भाव से मैं स्वात्मा में ही रहना चाहता जैनधर्म के विषय में पाश्चात्त्य विद्वानों के मन्तव्य__ जैन धर्म सब प्रकार से स्वतंत्र है, इस ने अन्य किसी धर्म की नकल या अनुकरण नहीं किया / डो. हर्मन जेकोबी जैन धर्म हिन्दु (वैदिक) धर्म से सर्वथा भिन्न और स्वतंत्र धर्म है / प्रो. मेक्समूलर जैन धर्म की स्थापना, प्रारम्भ, जन्म कब से हुआ, इस की शोध करना प्रायः असंभव है / हिन्दुस्तान के धर्मों में जैन धर्म सब से प्राचीन है / जी.जे. आर.फरलांग 0 240