________________ जैन धर्म की अतिप्राचीनता में जैनेतर शास्त्र के प्रमाण जैन धर्म जैनेतरों के प्राचीनतम वेदों और पुराणों से पूर्व भी विद्यामान था, इस बात के निम्न लिखित प्रमाण हैं, [1] "कैलासे पर्वते रम्ये, वृषभोऽयं जिनेश्वरः / चकार स्वावतारं यः, सर्वज्ञः सर्वगः शिवः" / / 1 / / (शिव पुराण) अर्थः-"(केवलज्ञान द्वारा) सर्वव्यापी, कल्याण स्वरूप, सर्वज्ञ इस प्रकार के ऋषभदेव-जिनेश्वर मनोहर कैलास (अष्टापद) पर्वत पर अवतरित हुए / " [2] "रैवताद्रौ जिनो नेमियुगादिर्विमलाचले / ऋषीणामाश्रमादेव, मुक्तिमार्गस्य कारणम्" / / 2 / / (प्रभासपुराण) अर्थः- रैवतगिरि (गिरनार) पर नेमिनाथ, और विमलाचल (शत्रुजयसिद्धगिरि) पर युगादि (आदिनाथ) पधारे / ये गिरिवर ऋषियों के आश्रम होने के कारण मुक्तिमार्ग के हेतु हैं / " [3] "अष्टषष्टिषु तीर्थेषु, यात्रायां यत् फलं भवेत् / आदिनाथस्य देवस्य, स्मरणेनापि तद् भवेत्" / / 7 / / __ (नाग पुराण) - 22