________________
( ४१ ) नन प्रत्येकशः कर्मणामानवकारणं किमिति चेत् ज्ञानदर्शनीपघातान्तरायमात्सर्यादीनि ज्ञानावरणदर्शनावरणास्रवकारणानि । दुःखशोकतापक्रंदनवधपरिवेदनादयोऽसद्वेद्यस्य, भूतप्रत्यनुकपादानक्षान्तिशौचादयः सवेद्यस्य, धर्माद्यवर्णवादीदर्शनमोहस्य, कषायोदिततीव्रपरिणामश्चारित्रमोहस्य, बहारभपरिग्रहत्वं नारकायुष , माया तैर्यग्योनस्य, अल्पारंभपरिग्रहत्वं मानुषायुषः, सरागसंयमादयः सम्यक्त्वं च देवस्य, मनोवाक्कायकौटिल्यमन्यथाप्रवृतिश्चाशुभशरीरादिनामकर्मणः, तद्विपरीतं
शंका:-प्रत्येक कर्म के आश्रव का कारण क्या है ?
समाधान:-ज्ञान और दर्शन के विषय में उपघात (प्रशस्त भान को दुषमा लगाना), अंतराय (ज्ञान के प्रचार और प्रसार का विरोध करना) भारसर्य (मेरे बराबर हो जायगा-इस अभिप्राय से किसी को न पढाना) वगैरह ज्ञानावरण दर्शनावरण कर्म के प्राव के कारण हैं । दुःख, शोक, ताप (पश्चात्ताप ), पावन ( विलाप ), वध, परिवेदन ( ऐसा रोना कि दूसरों को दया आजाय ) आदि कारणों से असातावेदनीय कर्म का आश्रव होता है। भूत-अनुकम्पा, (प्राणीमात्र पर दया ), व्रती अनुकम्पा ( वतियों पर विशेष दया), दान, क्षान्ति (क्षमा ), शौच ( लोभ का त्याग ) आदि भावों से साता वेदनीय कर्म का प्राश्रव होता है। धर्म वगैरह के सम्बन्ध में झूठा दोष लगाना,दर्शन मोह के आश्रव का कारण है । कषायो के उदय से तीव्र परिणाम होना चारित्र मोह के पाश्रव का कारण है। वहुत आरंभ करना और बहुत परिग्रह रखना नरकायु के आश्रव का कारण है। मायाचार तियंचायु के पाश्रव का कारण है । थोडा आरंभ करना और थोड़ा परिग्रह रखना मनुष्यायु के पाश्रव का कारण है । सराग संयम ( राग सहित गृभाचरण ) वगैरह तथा सम्यक्त्व