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नास्तीत्यस्य कोथं. इति चेत्, घटो घटत्वेनास्ति पटत्वेन नास्ति । मृत्द्रव्यत्त्वेनास्ति सुवर्णद्रव्यत्त्वेन नास्ति । स्वक्षेत्रादस्ति परक्षेत्रान्नास्ति । स्वकालादस्ति परकालान्नास्तीति 1
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• ननु प्रमेयस्य किं स्वरूपं किं वा पररूपमितिचेत् प्रमेयस्य प्रमेयत्वादिकं स्वरूपं घटत्वादिकं पररूपम् । प्रमेयं प्रमेयत्वेनास्ति घटत्वादिना नास्ति । तथैव जीवादिद्रव्याणां षण्णां शुद्ध सदद्रव्यमपेक्ष्या स्तित्वं, तत्प्रतिपक्षं तदभावमशुद्धद्रव्यमपेक्ष्य नास्तित्वम्वोपपद्यते । महासत्त्वरूपस्य शुद्धद्रव्यस्य सकलद्रव्यक्षेत्रकालाच - पेक्षमा सस्वस्य विकलद्रव्याद्यपेक्षयाऽसत्त्वस्य च व्यवस्थितेः । एवमेव सकलक्षैत्रकालव्यापिन आकाशस्य सकलकालक्षेत्रापेभया सरव यत्किञ्चित् क्षेत्रकालाद्यपेक्षयाऽसत्त्वं च ज्ञातव्यम् ।
समाधान - अभिप्राय यही है कि घट घट रूप से है पट रूप से नही । मिट्टी द्रव्य रूप से है - स्वर्णद्रव्य रूप से नहीं । अपने क्षेत्र की अपेक्षा है - पर क्षेत्र की अपेक्षा नही । स्वकाल से है, परकाल से नही ।
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शंका- प्रमेय का क्या स्वरूप है और पररूप क्या है। समाधान - प्रमेय का प्रमेयत्व जो धर्म है वही उसका स्वरूप है और घटत्व श्रादि पररूप है । इम कारण प्रमेय प्रमेयत्व स्वरूप से है और घटत्व रूप से नही है । उसी प्रकार जीवादिक छह द्रव्यों का भी शुद्ध सत् द्रव्य की अपेक्षा से अस्तित्व और उससे विरुद्ध अशुद्ध असत् द्रव्य की अपेक्षा नास्तित्व भी सिद्ध होता है । महासत्त्व रूप शुद्ध द्रव्य के भी सम्पूर्ण द्रव्य क्षेत्र तथा कालादिकी अपेक्षा सत्त्व की औौर विकल द्रव्य क्षेत्र कालादि की अपेक्षा से प्रसव की व्यवस्था सुसंगत है। इसी प्रकार सम्पूर्ण क्षेत्र काल-व्यापी आकाश का भी सम्पूर्ण काल क्षेत्र की अपेक्षा से तो सत्त्व और अल्प द्रव्य क्षेत्र काल आदि की अपेक्षा से श्रसत्त्व है, ऐसा जान लेना चाहिए ।