Book Title: Jain Darshansara
Author(s): Chainsukhdas Nyayatirth, C S Mallinathananan, M C Shastri
Publisher: B L Nyayatirth

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Page 210
________________ ( १६१ ) ननु यदि ज्ञाने ज्ञेयोपचारस्तदा ज्ञाने निक्षेपत्व भवितव्यम, ज्ञातुनिक्षेपत्व कथमिति चेन्न, यद्यपि ज्ञाने ज्ञेयोपचारेण, तज्ज्ञानं तद्वस्तु प्रोच्यते, तथापि तजज्ञानं ज्ञात्राश्रयमिति ज्ञाताऽऽत्मैवांगमनिक्षेपो व्यवह्रियते। द्वितीयो नो आगमद्रव्यनिक्षेपस्त्रिविधः, ज्ञातृशरीरं, भावि, तद्व्यतिरिक्त चेति । तत्र प्रथमेन राजज्ञातुः शरीरं राजा कथ्यते । ज्ञातृकाययोरेकक्षेत्रावगाहसम्बन्धत्वात् ज्ञातुः त्रिकालगोचरशरीरमस्य विषयः । कार्यस्योपादानं भावि नोग्रागमद्रव्य, अनेन यूवराज एव राजा प्रतिपाद्यते । तस्य भाविराजत्वात, राज्ञ उपादानकारण शंका-यदि ज्ञान मे ज्ञेय का उपचार किया जाता है तब तो ज्ञान मे निक्षेपपना होना चाहिए फिर ज्ञाता को निक्षेपत्व कैसे होगा? , समाधान-ऐसा कहना ठीक नही । यद्यपि ज्ञान में ही ज्ञेय का उपचार करने से उस ज्ञान को ही निक्षेप कहा जाना चाहिए-फिर भी वह ज्ञान ज्ञानी के आश्रय है-ज्ञाता को छोड़कर अलग रहता नहीं; इसलिए ज्ञाता पात्मा को ही आगमनिक्षेप कहा जाता है। दुसरा नोपागम द्रव्य-निक्षेप तीन तरह का है-ज्ञातशरीर भावी और तव्यतिरिक्ति। इनमें ज्ञाता राजा के शरीर को राजा कहा जाना-ज्ञात-शरीर है। ज्ञाता और शरीर के एक.. श्रेत्रावगाह सम्बन्ध होने से ज्ञाता का कालिक शरीर इसका विपय है। कार्य का जो उपादान कारण है वह भावि नोमागम द्रव्य है इसके द्वारा युवराज ही राजा कहा जाता है, क्योंकि भविष्य ही राजा होने वाला है और वही राजा का उपारान

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