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वृतीयोऽध्यायः
नयस्वरूपम् प्रमाणनयैरधिगम इति पदार्थाधिगमहेतत्वेन निर्दिष्टयो: प्रमाणनययोः प्रमाणं व्याख्यातं । साम्प्रतं नयो व्याक्रियते ।
नयो हि प्रमाणविकल्प: तस्य विकलादेशत्वात् । तथा चोक्तं-"सकलादेशः प्रमाणाधीनो विकलादेशो नयाधीनः ।" प्रमाणतो वस्तु परिगृह्य परिणतिविशेषापेक्षयार्थावधारणं नयस्य प्रयोजनं । एतदेव स्पष्टयितु शास्त्रकारस्तस्यानेकानि लक्षणानि निरुक्तानि । तथा हि-वस्तुन्यनेकान्तात्मन्यविरोधेन
तृतीय अध्याय
नय स्वरूप प्रमाण और नम से तत्त्वों का ज्ञान होता है- इस सूत्र मे पदार्थों के अधिगम के उपाय रूप में कहे गये प्रमाण और नय में से प्रमाण का वर्णन किया। अब नय का व्याख्यान किया जाता है। नय निश्चय से प्रमाण का ही विकल्प है; क्योकि वह विकलादेशी है। ऐसा ही कहा है-"सकलादेश प्रमाण के आधीन है तो विकलादेश नय के" । अर्थात् प्रमाण वस्तु के पूर्ण रूप को ग्रहण करता है और नय उसके अशो को। प्रमाण के द्वारा जानी गई वस्तु के सम्बन्ध मे विशेष पर्याय की अपेक्षा से पदार्थ का निश्चय करना नय का प्रयोजन है। इसी प्राशय को स्पष्ट करने के लिए शास्त्रकारो ने उसके अनेक लक्षण प्ररूपित किए हैं। जैसे कि-अनेक धर्म वाली वस्तु मे विरोध रहित हेतु का