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भेदको व्यवहार..। यथा यत् सत् तद् द्रव्यं गुरगो वा। द्रव्य तु जीवद्रव्यमजीवद्रव्य वा। जीवाजीवावपि देवनारकादिर्घटादिश्चेति । काल्पनिको भेदस्तदाभासः ।
पर्यायाथिक्रस्यचत्वारो भेदा.-ऋजुसूत्रः, शब्दः, समभिरूढ, एवंभूतश्चेति । ऋजू प्रगुरण वर्तमान सूत्रयतीति ऋजुसूत्रः । पूर्वापरकालविषयानतिशय्य वर्तमानकालविषयानादत्त ऽयं नयः अतीतानागतयोविनष्टानुत्पन्नत्वेन व्यवहाराभावात् ।
ननु वर्तमानपर्यायमात्रग्राहकत्वादस्य नयस्य लोकसंव्यवहारलोपप्रसङ्ग इतिचेदत्रास्य नयस्य विषयमात्रप्रदर्शनं क्रियते । लोकसंव्यवहारस्तु सर्वनयसमूहसाध्यः । न चायमतीतानागतयो
नय है। जैसे जो सत् है वह द्रव्य है या गुण है। द्रव्य है तो जीव द्रव्य है कि अजीव द्रव्य । जीव है तो देव नारकी वगैरह, अजीव है तो पुद्गल धर्म अधर्म वगैरह । विधि-पूर्वक भेद न करके कल्पना से भेद करना व्यवहाराभास है।
पर्यायाथिक नय के चार भेद हैं-ऋजूसूत्र, शब्द, समभिरूढ और एवंभूत । जो वर्तमान को विषय करे वह ऋजूसूत्र है। यह नय अतीत अनागत दोनों पर्यायों को छोडकर वर्तमान पर्याय मात्र को ग्रहण करता है । अतीत पर्याय के नष्ट हो जाने से तथा भावी पर्याय के पैदा न होने से व्यवहार नहीं हो सकता। __शंका-यह नय मात्र वर्तमान पर्याय का ग्रहण करने वाला होने से लोक व्यवहार का लोप हो जायगा।
समाधान-ऐसा नहीं है। यहा इस नय का विषय मात्र दिखलाया है । लोक व्यवहार तो सम्पूर्ण नयों के समूह द्वारा चलता है। और यह नय भूत और भावी का निषेध करता हो ऐसा भी नही है। प्रतिपक्ष की अपेक्षा रखता हा यह मात्र