________________
जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
रहे। ठुड्डी हंसली से चार अंगुल ऊपर स्थिर रखें। दृष्टि नासाग्र पर रहे। श्वास दीर्घ और शान्त रहे। समय - एक मिनट से आधा घण्टा। प्रति सप्ताह तीन-तीन मिनट बढ़ाएं। जिनसे पद्मासन नहीं लगता हो, वे अर्द्धपदमासन अर्थात् केवल एक पैर के पंजे को दूसरी जंघा पर रखकर अर्द्धपदमासन का अभ्यास करें। पदमासन की सिद्धि के लिए तीन घंटे तक इसका अभ्यास किया जा सकता है। लाभ - मन की एकाग्रता बढ़ती है। मेरुदण्ड एवं गर्दन सीधी रहती है। . जिससे प्राण के प्रवाह को ऊर्ध्वगामी बनने में सहायता मिलती है। यह आसन ब्रह्मचर्य साधना की दृष्टि से उपयोगी है। हाथ के अंगूठे और तर्जनी अंगुली पर दबाव पड़ने से ज्ञान तन्तु सक्रिय होते हैं, अतः इसका नाम ज्ञानमुद्रा है। 4. तुलासन -
इस आसन को करते समय शरीर तुला की तरह संतुलित होता है। पूरे शरीर को तुला में तोल रहे हों- ऐसा प्रतीत होता है, अतः इसे तुला-आसन के नाम से पुकारा जाता है। उकडूं बैठें। एड़ियों को ऊपर उठाकर पंजों पर ठहरें। घुटने को नीचे झुकाएं। शरीर का संतुलन पंजों पर बनाएं। एक पैर को दूसरे पैर की. जंघा के आगे घुटने पर रखें। हाथ घुटने के पास रखें और जब एक पांव पर संतुलन बन जाए, तब हाथ जोड़ लें। मन को श्वास पर केन्द्रित करें या किसी एक बिन्दु पर टिकाएं। शीघ्रता न करें। संतुलन से ही यह आसन सिद्ध होता है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org