Book Title: Jain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Author(s): Trupti Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 292
________________ 290 जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति है कि रसना पर आया हुआ अच्छा या बुरा रस चखने में ना आए, अतः रस का नहीं, रस के प्रति जगने वाले राग-द्वेष का त्याग करना चाहिए। यह शक्य नहीं है कि शरीर से स्पर्श होने वाले अच्छे या बुरे स्पर्श की अनुभूति न हो, अतः स्पर्श का नहीं, स्पर्श के प्रति जगने वाले राग-द्वेष का त्याग करना चाहिए। इसी प्रश्न के उत्तर में आगे उत्तराध्ययनसूत्र में लिखा है -इन्द्रियों के शब्दादि मनोज्ञ अथवा अमनोज्ञ विषय आसक्त व्यक्ति के लिए ही राग-द्वेष का कारण बनते हैं, वीतराग के लिए नहीं। इन्द्रियों. और मन के विषय, रागी सामान्य पुरुषों के लिए ही तनाव (बन्धन, दुःख) के कारण होते हैं। ये ही विषय वीतरागियों के बन्धन या दुःख का कारण नहीं होते हैं। कामभोग न किसी को बन्धन में डालते हैं और न किसी में विकार ही पैदा कर सकते हैं, किन्तु जो विषयों में राग-द्वेष करता है, वही राग-द्वेष से तनावग्रस्त होता है।82 . वस्तुतः, इन्द्रियाँ तनाव का कारण नहीं होती, इन्द्रियों के विषयों पर राग-द्वेष की वृत्ति तनावग्रस्तता का हेतु बनती है। व्यक्ति इन्द्रियों का त्याग तो नहीं कर सकता, किन्तु इन्द्रियों का व्यापार करते हुए भी तनावमुक्त रह सकता है, अतः इन्द्रियों का निरोध नहीं, अपितु उनके पीछे रही हुई राग-द्वेष की वृत्तियों का निरोध करना होगा। दूसरे शब्दों में कहें, तो इन्द्रिय-संयम करना होगा, तभी तनावमुक्त अवस्था को प्राप्त किया जा सकता है। भगवान् महावीर ने स्पष्ट कहा है कि यदि साधक को मानसिक विचारों से बचना है और अपने वैराग्य-भाव को सुरक्षित रखना है, तो अनुकूल की चाह से व उसके पुनः प्राप्ति की चाह अर्थात् तृष्णा से मुक्त होना होगा। इसी प्रकार, अपनी चेतना को प्रतिकूल के वियोग की चिंता अर्थात् आर्तध्यान से मुक्त रखना होगा, क्योंकि तनाव का कारण वस्तु की अनुभूति ही नहीं, उस अनुभूति के परिणामस्वरूप अनुकूल की पुन:-पुनः प्राप्ति की और प्रतिकूल के वियोग की चिंता ही तनाव का मूलभूत कारण है, अतः तनावमुक्ति के लिए इन दोनों से ऊपर उठना आवश्यक है। आचारांगसूत्र - 2/3/15/131-135 उत्तराध्ययनसूत्र - 32/109 581 वही - 32/100 582 वही- 32/101 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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