Book Title: Jain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Author(s): Trupti Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 323
________________ जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति चित्त में होने वाले संकल्प - विकल्प ही मन का आकार ग्रहण करते हैं इस प्रकार, आत्मा की सक्रियता चित्त और चित्त की सक्रियता मन है । ये तीनों अभिव्यक्ति के स्तर पर भिन्न-भिन्न प्रतीत होते हुए भी सत्ता के स्तर पर अभिन्न ही हैं । आगे, इस अध्याय में आत्मा की विभिन्न अवस्थाएं और उनका तनाव से क्या सह - सम्बन्ध है, इसे बताया गया है। आत्मा की आठ अवस्थाओं में से कौनसी अवस्थाएं तनावयुक्त अवस्थाएं व कौनसी अवस्थाएँ तनावमुक्त अवस्थाएँ हैं, इसकी चर्चा की गई है। आगे, तनावग्रस्तता और तनावमुक्ति के आधार पर आत्मा के आध्यात्मिकविकास के स्तरों की चर्चा की गई है। वस्तुतः तनाव शुद्धात्मा में नहीं मलिन चित्तवृत्तियों में ही उत्पन्न होते हैं। चित्त आत्मा की एक पर्याय- दशा है । चित्त की मलिनता ही आत्मा को स्वभाव - दशा से विभाव - दशा में ले जाती है, और मलिन चित्त की चंचलता ही मन में इच्छाओं, आकांक्षाओं आदि को जन्म देती है । 321 आचार्य महाप्रज्ञ ने चित्त व मन के अन्तर को बताते हुए यह प्रमाणित किया है कि चित्तवृत्तियाँ ही तनाव - उत्पत्ति का हेतु (कारण) हैं एवं मन तनाव की जन्मस्थली है या तनाव ही मन को आकार प्रदान करता है। चित्तवृत्ति अर्थात् चेतना को स्थिर किया जा सकता है, किन्तु मन को स्थिर नहीं किया जा सकता, मन का तो निरोध करना होता है। 'मन' को 'अमन' करना होता है, इसलिए मन स्थायी तत्त्व नहीं हैं । आत्मा की पर्याय चित्त और चित्त की पर्याय मन है । मन तो चित्त के आधार पर जीवित रहता है, फिर भी मन का तनाव से गहरा सम्बन्ध है । चित्तवृत्तियाँ तनाव का हेतु होती हैं, किन्तु उनकी जन्मस्थली तो मन ही है, क्योंकि मन और तनाव - दोनों ही विकल्पजन्य हैं। भावमन में ही इच्छाएँ, आकांक्षाएँ आदि उत्पन्न होती है और उन इच्छाओं, आकांक्षाओं आदि के अपूर्ण रहने पर या नवीन इच्छाओं आदि के उत्पन्न होने पर मन दुःखी या तनावग्रस्त हो जाता है। मनोवैज्ञानिकों ने मन के भी तीन स्तर माने हैं। इन स्तरों के आधार पर यह समझाया गया है कि अचेतन मन में रही हुई दमित इच्छाएँ और वासनाएँ अथवा जैनदर्शन की दृष्टि में उपशमित एवं सत्ता में रहे हुए कर्म, अवचेतन मन के द्वारा मन के चेतन स्तर पर अर्थात् Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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