Book Title: Jain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Author(s): Trupti Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 324
________________ जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति उदय में आते हैं और इस चेतन स्तर पर तनाव उत्पन्न करते रहते हैं इस प्रकार, मन के तीनों स्तर तनाव से जुड़े हुए हैं। 322 वस्तुतः, जैनदर्शन में ही नहीं, अपितु बौद्ध एवं योगदर्शन में भी तनावों की स्थिति के आधार पर क्रमशः मन की चार, चार और पाँच अवस्थाओं का वर्णन मिलता है, जो लगभग समानान्तर है। हमने प्रस्तुत शोधप्रबन्ध के इस तीसरे अध्याय में उनकी भी तुलनात्मक दृष्टि से चर्चा की है। बौद्धदर्शन में तो चित्त के चैत्तसिक-धर्मों या चित्त के कार्यों के बावन प्रकार बताए गए हैं, जिनको मैंने तनावों के सह-सम्बन्ध के आधार पर समझाया है और यह बताया है कि कौनसे चैतसिक-धर्म तनावों को जन्म देते हैं और कौनसे चैतसिक-धर्म तनावों से मुक्त करते हैं। इस शोध-प्रबन्ध के चौथे अध्याय में जैन-धर्मदर्शन की विविध अवधारणाओं का तनाव से सह- सम्बन्ध बताया गया है। सर्वप्रथम, जैनदर्शन की त्रिविध आत्मा की अवधारणा के अनुसार यह बताया गया है कि बहिरात्मा तनावग्रस्त आत्मा है, अन्तरात्मा तनावमुक्ति के लिए प्रयास करती है, जबकि परमात्मा तनविमुक्त है। दूसरे शब्दों में, अन्तरात्मा की अवस्था को तनावमुक्ति की साधना की प्रक्रिया भी कहा जा सकता है और उसका यह प्रयास सफल होने पर साधक या व्यक्ति पूर्णतः तनावमुक्ति की अवस्था को प्राप्त करता है, जिसे जैनदर्शन में परमात्मा कहा गया है। आत्मा की उपयोग - रूप या सक्रिय स्थिति को जैनदर्शन में चेतना कहा गया है। इस चेतना की भी तीन अवस्थाएँ हैं - 1. ज्ञानचेतना, 2. कर्मचेतना 3. कर्मफल चेतना । शरीर की इन्द्रियों के माध्यम से जब आत्मा का बाह्यजगत् से सम्पर्क होता है। तो उसके परिणामस्वरूप उसमें विविध प्रकार की संवेदनाएँ उत्पन्न होती हैं। उन संवेदनाओं के प्रति आत्मा की सजगता ही ज्ञान - चेतना है। ज्ञान - चेतना के माध्यम से व्यक्ति उन संवेदनाओं को जानता मात्र है, उनसे प्रभावित नहीं होता है। दूसरे, जब इन्द्रियाँ बाह्यजगत के सम्पर्क में आती हैं, तब जो अनुभूति या संवेदनाएँ होती हैं, यदि उन संवेदनाओं से उन्हें प्राप्त करने या दूर करने की इच्छा का जन्म होता है, तब यह इच्छा या संकल्प ही कर्मचेतना बन जाती है। कर्मचेतना ही आत्मा में तनाव उत्पन्न करती है। जहाँ तक कर्मफलचेतना का सम्बन्ध है, यदि उस स्थिति में साधक करता है, मात्र उनमें ज्ञाता - द्रष्टा रहता है, तो यह चेतना कर्मफल संकल्प - विकल्प नहीं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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