Book Title: Jain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Author(s): Trupti Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 313
________________ जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति 311 परिमार्जन करता हुआ बैंगनी और बैंगनी से कापोत-वर्ण पर अपना ध्यान केन्द्रित करता हुआ आध्यात्मिक विकास में किंचित् प्रगति करता है। 25 नील-लेश्या वाला व्यक्ति कृष्ण से कुछ ठीक होता है। उसे मन की पूर्ण शांति तो नहीं मिलती, पर शारीरिक-स्वस्थता जरूर प्राप्त होती है, जो कहीं-ना-कहीं मानसिकता पर भी प्रभाव डालती है। नीले रंग का ध्यान इस प्रकार करना चाहिए कि वह हरे रंग में बदल जाए। कापोत रंग - आधुनिक विज्ञान ने कापोत रंग के स्थान पर हरा रंग माना है।26 वस्तुतः, यह रंग भी ध्यान करने योग्य तो नहीं है, पर काले व नीले रंग की अपेक्षा से ध्यान करने योग्य है। कापोत लेश्यावाला व्यक्ति उपर्युक्त दोनों लेश्याओं की अपेक्षा से तो शुभ है, परन्तु यह भी अशुभ लेश्या ही मानी जाती है, क्योंकि कापोत लेश्या वाला व्यक्ति बाहर से कुछ और तथा अंदर से कुछ और ही प्रतीत होता है। वह अपने दुर्गुणों को छिपाकर सद्गुणों को प्रकट करता है। कापोत लेश्या वाला व्यक्ति जब हरे रंग का ध्यान करता है तो वह हरा रंग रक्तवाहिनी, नाड़ियों का तनाव उपशांत करता है। 27 जब व्यक्ति में भावनात्मक गड़बड़ी होती है, तब हरे रंग की किरणें मस्तिष्क पर डालकर चिकित्सा की जाती है, किन्तु साथ ही यह हरा रंग ईर्ष्या, द्वेष और अंध- विश्वास का सूचक भी है। 28 हरे रंग का ध्यान इस प्रकार करना चाहिए कि उसके गुणों का ही असर हो। लाल रंग - लाल रंग शुभ और उत्तम माना जाता है। तेजोलेश्या को भी शुभ लेश्या कहा जाता है। तेजोलेश्या वाला व्यक्ति लाल रंग का ध्यान करता है। लाल रंग निर्माण का रंग है। यह लाल रंग हमारे शरीर में एक ऊर्जा उत्पन्न करता है। यह ऊर्जा पहले हमारे शरीर के रसायनों में परिवर्तन करती है, जिससे धीरे-धीरे हमारी आदतों में भी परिवर्तन आना प्रारम्भ हो जाता है। "ध्यान के माध्यम से जब यह लाल रंग प्रकट होता है, दिखने लग जाता है, तब इस लाल रंग के 625 जैन योग-साधना, आत्मारामजी, पृ.340 626 वही, पृ. 341 627 प्रेक्षा ध्यानं : लेश्या ध्यान, -आचार्य महाप्रज्ञ, पृ. 22 628 प्रेक्षा ध्यान : लेश्या ध्यान, आचार्य महाप्रज्ञ, पृ. 45 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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