Book Title: Jain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Author(s): Trupti Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 312
________________ जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति 4. तेजो-लेश्या – लाल (अरुण) रंग 5... पद्म-लेश्या - पीला रंग 6. शुक्ल-लेश्या – श्वेत रंग काला रंग - कृष्ण-लेश्या का वर्ण काला है, अतः कृष्ण-लेश्या वाले व्यक्ति का ध्यान कृष्णवर्णी ही होता है। इस लेश्या में रहा हुआ व्यक्ति कभी भी, एक क्षण के लिए भी तनावमुक्ति का अनुभव नहीं कर सकता, क्योंकि उसमें हिंसा, क्रूरता आदि मलिन वृत्तियों का उद्भव होता रहता है और इसी कारण उसका आभामण्डल भी काला होता है। साधना की अपेक्षा से यह कहा जाता है कि ऐसे व्यक्ति को काले रंग का अर्थात अपनी कलुषवृत्ति का परिमार्जन करना चाहिए। वृत्तियों के परिमार्जन से यह काला रंग बैंगनी रंग में परिवर्तित हो जाता है। बैंगनी रंग स्वास्थ्य- . केन्द्र को संयमित करता है। मनोवैज्ञानिकों के अध्ययन के आधार पर बैंगनी रंग की यह विशेषता है कि उसमें किंचित् लाली भी होती है, अर्थात् अशुभवृत्तियों की गहन कालिमा में प्रकाश का एक कण उद्भूत होता है। अतः, एक अपेक्षा से, आध्यात्मिक-विकास की दिशा में उठा यह प्रथम चरण है। आचार्य महाप्रज्ञ के अनुसार बैंगनी रंग ऊपरी मस्तिष्क को पोषण देने वाला रंग हैं। 24 ___ कृष्ण लेश्या वाले व्यक्ति को अपना ध्यान इस प्रकार केन्द्रित करना चाहिए कि गहन अंधकार में प्रकाश की किरण का उद्भव हो रहा है, जिससे वह काला रंग बैंगनी रंग में परिवर्तित हो रहा है। कृष्ण लेश्या वाले व्यक्ति की साधना कृष्णवर्णी दुष्प्रवृत्तियों के शोधन के लिए होती है। जब कृष्ण-लेश्या वाला व्यक्ति ऐसा ध्यान करता है, तो उसकी दुर्भावनाएँ अंशतः कम होती हैं, इसलिए काला रंग बैंगनी रंग में परिवर्तित हो रहा है- ऐसा ध्यान करना चाहिए। नीला रंग – नील-लेश्या वाला व्यक्ति कृष्ण-लेश्या वाले से कुछ कम क्रूर होता है, पर इसका रंग भी ध्यान करने योग्य नहीं है, किन्तु- योग की अपेक्षा से लेश्याध्यान का साधक काले रंग का 624 प्रेक्षाध्यान : लेश्या ध्यान, पृ. 23 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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