Book Title: Jain Darshan me Tanav aur Tanavmukti
Author(s): Trupti Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 254
________________ 252 जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति बढ़ेगा। मुनाफा बढ़ने से क्रयशक्ति बढ़ेगी। क्रयशक्ति बढ़ने से पुन: माल की खपत बढ़ेगी। इस प्रकार, देश और व्यक्ति- दोनों के आर्थिक विकास में सहायता मिलेगी। संक्षेप में कहें, तो आज की अर्थशक्ति इन तीन सिद्धांतों पर खड़ी हुई है - इच्छाएँ बढ़ाओ, माल खपाओ और मुनाफा कमाओ। इन सबके आधार पर उपभोक्तावादी संस्कृति का विकास हो रहा है। उपभोग की प्रवृत्ति इच्छाओं को जन्म देती है, जिससे तनाव बढ़ता है। उत्तराध्ययनसूत्र के चतुर्थ' असंस्कृत अध्ययन में स्पष्टतः कहा गया है- 'वित्तेण ताणं न लभे पमत्ते', अर्थात् धन व्यक्ति की सुरक्षा करने में समर्थ नहीं है। यही कारण है कि आज आर्थिक-दृष्टि से सम्पन्न देश भी तनाव से मुक्त नहीं हैं। इच्छाओं की वृद्धि से उपभोग की आकांक्षा उत्पन्न होती है। उपभोग के लिए अर्थ की आवश्यकता होती है, अतः व्यक्ति येन-केन- प्रकारेण अर्थ-अर्जन करना चाहता है। इससे शोषण और दोहन की प्रवृत्तियां बढ़ती हैं। दोहन की प्रवृत्ति से पर्यावरण असंतुलित होता है और शोषण की वृत्ति से समाज में वर्गभेद व वर्ग-संघर्ष जन्म लेते हैं, फलतः तनाव बढ़ते ही जाते हैं। इस प्रकार, यदि तनावों से मुक्त होना है, तो इस अर्थ-चक्र को ही परिवर्तित करना होगा, क्योंकि चल-अचल सम्पत्ति, धन, धान्य और गृहोपकरण भी दुःख से, तनाव से मुक्त करने में समर्थ नहीं होते हैं।501 __ इच्छाओं का निर्मूलन एकमात्र ऐसा उपाय है, जो व्यक्ति को तनावों से मुक्त कर सकता है। उपभोक्तावाद का आधार अनियन्त्रित इच्छाएँ हैं और जैनधर्म इच्छाओं को सीमित करने या उनके निर्मूलन करने की बात करता है। अतः जैसा कि पूर्व में दशवैकालिक सूत्र के आधार पर कहा गया है 502 - 'कामे कमाही कमियं ख दुक्खं', कामनाओं, इच्छाओं को दूर करना ही दुःखों को दूर करना है, अर्थात् इच्छाओं का निर्मूलन होना ही तनावों से मुक्ति या तनाव-प्रबंधन है। 500 उत्तराध्ययनसूत्र - 4/5 501 उत्तराध्ययनसूत्र - 6/5 502 दशवैकालिकसूत्र - 2/5 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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