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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
असफलता को पाता है, फलतः, उदासी एवं अवसाद में चला जाता है। सकारात्मक सोच जीवन में सफलता का मूल मंत्र है। व्यक्ति की सोच उसके दैनिक जीवन के क्रियाकलापों तथा आचार-व्यवहार को सीधा प्रभावित करती है। मोक्षपाहुड में लिखा है- जो सम्यग्दर्शन से शुद्ध है वही निर्वाण प्राप्त करता है। सम्यग्दर्शन-विहीन पुरुष इच्छित लाभ प्राप्त नहीं कर पाता।408 दंसणपाहुड में भी यह अंकित किया गया है किसम्यग्दर्शन से भ्रष्ट व्यक्ति को कभी भी निर्वाण की प्राप्ति नहीं होती
कहने का तात्पर्य यही है कि जो सम्यग्दृष्टि जीव है, जो सकारात्मक विचार वाला व्यक्ति है, वही मोक्ष प्राप्त करता है और तनावमुक्त अवस्था ही मोक्ष है। सम्यग्दृष्टिकोण के अभाव में व्यक्ति सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। वह अपनी सम्यक इच्छाओं को भी पूर्ण करने में असफल हो जाता है। किसी व्यक्ति द्वारा जो भी कार्य किये जाते हैं, वे पहले सोच के रूप में उसके मानसिक-पटल पर उभरते हैं। जिसकी सोच सकारात्मक होगी, उसका मानसिक संतुलन बना रहेगा और अगर सोच नकारात्मक रही, तो व्यक्ति तनावग्रस्त हो जाएगा। जैनदर्शन के अनुसार सम्यग्दृष्टिकोण को सकारात्मक सोच कहा गया है। व्यक्ति का मिथ्या दृष्टिकोण उसकी नकारात्मक सोच का सूचक है। नकारात्मक सोच का परिणाम चिंता और तनाव है। मुनि चन्द्रप्रभजी लिखते है- 'मस्तिष्क में जैसा डालोगे, वह वापस वही देगा।', अर्थात् अगर नकारात्मक-सोच है, तो उसका परिणाम भी नकारात्मक ही होगा और जो सकारात्मक-सोच होगी, तो मानसिक संतुलन बना रहेगा, परिणाम में वह सम्यक-आचार और व्यावहारिक-दिशा ही देगा। आज की शैली में कहें, तो कम्प्यूटर में जो 'डाटा फीड' करेंगे, कम्प्यूटर वैसा ही परिणाम देगा। नकारात्मक विचार अपने मन को अशांत, बैचेन और अशुद्ध बनाते हैं। "नकारात्मक सोच व्यक्ति को शक्तिहीन बना देती है, जबकि विधायक-विचार आपको शक्ति प्रदान करते हैं और चेतना को शुद्ध बनाते हैं। जब हमारा मन नकारात्मक रूप से आवेशित होता है, तब प्राण के प्रवाह में बाधा उत्पन्न होने लगती है और प्राण-प्रवाह में
408 मोक्ष पाहडी - 39, समणसुत्तं, 224 409 दर्शन पाहुडी – 3, समणसुत्तं, 223
सकारात्मक सोचिए. श्री चन्द्रप्रभ सागर, पृ. 3 all मन को नियंत्रित कर तनावमुक्त कैसे रहें ?. एम.के. गुप्ता, पृ. 35
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